Gmail के नए ब्लॉक फीचर से अब सेंडर को कर सकेंगे ब्लॉक

गूगल लगातार अपने यूजर्स की सुविधा के लिए
अनेक फीचर्स ला रहा है।
इसी
वर्ष जून में गूगल द्वारा जीमेल में अनडू
फीचर को लॉन्च किया था। इस
फीचर द्वारा आप बिना किसी
एडिश्नल एक्सटेंशन के यूजर्स द्वारा प्रेषित मेल को अनडू
कर सकते थे। इस जबरदस्त फीचर के बाद
गूगल ने फिर से अपने जीमेल यूजर्स को दो नए
महत्वपूर्ण फीचर्स ‘‘ब्लाॅक और
अनसब्सक्राइब''दिए हैं।
आपको बता दे कि गूगल के ब्लॉक फीचर
की सहायता से अब आप किसी
भी यूजर्स को ब्लॉक कर सकते हैं यानि अब
आपको किसी भी यूजर्स द्वारा भेजे
गए मैसेज को एक-एक करके स्पाम में नहीं
भेजना पड़ेंगा बल्कि अब आप किसी
भी सेंडर को ब्लॉक कर सकेगें जिससे उनके मेल
अपने आप ही स्पैम मेल में चले जाएंगे।
गूगल अनसब्सक्राइब फीचर से अब आप
केवल कुछ क्लिक्स करके ही
किसी भी न्यूज लैटर्स को
अनसब्सक्राइब करने में कामयाब हो सकेंगे। गूगल
की ब्लॉग पोस्ट के अनुसार, यूजर्स इस
फीचर की मदद से
किसी भी ईमेल एड्रेस को ब्लॉक
कर सकते हैं। अगले सप्ताह से यह सुविधा आपको एंड्रॉयड
मोबाइल पर भी उपलब्ध होगी।
विश्व में गूगल की ईमेल सेवा सबसे अधिक
लोकप्रिय है जिसे 90 करोड़ लोग यूज़ करते हैं।

ESET NOD32 एंटीवायरस virus

ESET NOD32 एंटीवायरस
ESET NOD32 एंटीवायरस 5 आप तेजी से, प्रभावी और अपने ईमेल, सिस्टम, और आत्मरक्षा के लिए सुरक्षा के आसान उपयोग करने के लिए दे सकते हैं जो ESET सॉफ़्टवेयर के बाद के संस्करण है.ESET NOD32 एंटीवायरस 5 साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण के साथ साथ उन्नत प्रौद्योगिकियों का पता लगाने और बहुस्तरीय सुरक्षा सुविधाएँ प्रदान करता है.ESET NOD32 एंटीवायरस 5 वायरस की पहचान करता है ESET का अनूठा अनुमानी प्रौद्योगिकी पर बनाया गया है.आप ESET NOD32 एंटीवायरस 5 स्थापना रद्द करना चाहते हैं तो किसी भी तरह, आप इस पोस्ट में दो विकल्प आजमा सकते हैं.

Keep extra wasting | इन 6 ऐप के जरिए बात करके कम करें फोन का बिल

इन 6 ऐप के जरिए बात करके कम करें फोन का बिल
ऑनलाइन चैटिंग और विडियो कॉल ने तमाम दूरियां मिटा दी हैं। नेट से कनेक्ट होते ही सेकंड भर में आप किसी से भी रू-ब-रू हो सकते हैं और इससे आपके फोन का बिल भी कम होगा। इस मामले में गूगल हैंगआउट्स पॉप्युलर ऑप्शन है। कैसे करें इसका इस्तेमाल बता रहे हैं बालेंदु शर्मा दाधीच और अमित मिश्रा:
बात जब ऑनलाइन चैटिंग की हो, तो गूगल हैंगआउट्स बड़े काम की चीज है। इसे इस्तेमाल करने के लिए बुनियादी जरूरत हैं - दोनों तरफ इंटरनेट कनेक्शन, वेब कैमरा, माइक्रोफोन, स्पीकर और गूगल की मेंबरशिप यानी गूगल अकाउंट। इसके लिए सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने की जरूरत नहीं होती। पहली बार विडियो कॉल करने से पहले इंटरनेट से आपके ब्राउजर में एक प्लग-इन इंस्टॉल करना होता है, जो एकाध मिनट का काम है। स्मार्टफोन या टैबलट पर हैंगआउट्स इस्तेमाल करने के लिए ऐप डाउनलोड करने की जरूरत पड़ती है।
कैसे करें सेटअप
1. अपने वेब कैमरे, स्पीकर, माइक्रोफोन और इंटरनेट कनेक्शन को स्विच ऑन करें।
2. जीमेल अकाउंट से लॉगइन करें।
3. जीमेल के वेब पेज पर लेफ्ट में सबसे नीचे देखें। गूगल हैंगआउट्स का आइकन दिखाई देना चाहिए। दिखाई दे रहा है, तो क्लिक करके आगे बढ़ें, नहीं तो चौथा चरण पूरा करें।
4. जीमेल के वेब पेज में लेफ्ट साइड में मेल से जुड़े ऑप्शन के साथ-साथ यूजर का आइकन दिखाई देता है। इसे क्लिक करें, जिससे एक मेन्यू खुलेगा। Try the new hangouts पर क्लिक करने से गूगल हैंगआउट्स आइकन ऐक्टिव हो जाएगा।
5. अब गूगल हैंगआउट्स के आइकन पर क्लिक करें। इसे एक बार क्लिक करने पर आपके दोस्तों की लिस्ट दिखती है और दोबारा क्लिक करने पर वह सूची छिप जाती है।
6. इसमें कुछ दोस्तों के नाम और फोटो दिखाई दे रहे होंगे। ये ऐसे लोग हैं, जिन्होंने कभी आपको विडियो चैट के लिए निमंत्रण भेजा था। आप चाहें तो इनके फोटो पर क्लिक कर उनके साथ विडियो चैट सेशन शुरू कर सकते हैं।
7. आपको जिस व्यक्ति के साथ बात करनी है, वह इस लिस्ट में नहीं है, तो अपने फोटो के साथ दिख रहे लेंस के आइकन पर क्लिक करें। यहां आप अपने दोस्तों को सर्च करके विडियो चैट के लिए न्योता भेज सकते हैं। जैसे ही संबंधित व्यक्ति का नाम सर्च रिजल्ट में दिखाई दे, उसके नाम के साथ लगे बॉक्स पर क्लिक करें।
8. अब एक छोटा-सा बॉक्स दिखेगा, जिसमें विडियो कॉल का चिह्न बना होगा। इसे क्लिक करने पर आप विडियो कॉल सेशन शुरू कर पाएंगे।
9. यहां एक नई विंडो खुलेगी, जिसमें आपसे हैंगआउट्स का प्लग-इन इंस्टॉल करने को कहा जाएगा। Install Plug-in बटन दबाएं।
10. प्लग-इन इंस्टॉल होते ही विडियो कॉल की विंडो सामने आएगी। आपसे कॉल शुरू करने को कहा जाएगा, जिसे Join बटन दबाकर किया जा सकता है।
11. अब खुलने वाले छोटे-से बॉक्स में Invite बटन दिखाई देगा और उस व्यक्ति का नाम भी, जिसे आपने विडियो कॉल के लिए चुना था। यह बटन दबाएं। गूगल उस यूज़र को मेसेज भेज देगा और अगर वह आपके साथ विडियो कॉल में दिलचस्पी रखता है तो वह आपके साथ ऑनलाइन चैटिंग शुरू कर सकता है। यहां आप चाहें तो अन्य लोगों को भी इस कॉल में जोड़ सकते हैं।
गूगल हैंगआउट्स पर सिर्फ विडियो कॉल्स ही नहीं होते। आप चाहें तो टेक्स्ट मेसेज, फोटो भी भेज सकते हैं। जरूरी नहीं कि दोनों तरफ के लोग एक जैसी डिवाइस का ही इस्तेमाल कर रहे हों। एक यूज़र कंप्यूटर के जरिए, दूसरा स्मार्टफोन, तीसरा आइपैड के जरिए भी ग्रुप विडियो कॉल का हिस्सा बन सकता है।
और भी हैं हैंगआउट जैसे
Skype : पुराना है लेकिन हिट है
- इसने ही सबसे पहले विडियो कॉलिंग को दुनिया के सामने मॉडर्न और यूजर फ्रेंडली तरीके से पेश किया। इसे अब माइक्रोसॉफ्ट ने खरीद लिया है, लेकिन इसका रूप-रंग कमोबेश पहले की तरह ही है।
- आपको स्काइप पर जाकर अपना एक आईडी क्रिएट करना होगा। इसी के सहारे आप लोगों के इन्वाइट अक्सेप्ट भी कर सकते हैं।
- चैटिंग और पिक्चर भेजने के ऑप्शन मिलते हैं।
- यह पहले से ही काफी अच्छा काम करता रहा है, लेकिन जब से विंडोज ने इसे खरीदा लिया है, विंडोज़ डिवाइस पर यह खासा अच्छा काम करता है।
- विडियो की पिक्चर क्वॉलिटी यह सिग्नल स्ट्रेंथ के हिसाब से खुद-ब-खुद सेट कर लेता है इसलिए कमजोर या स्लो इंटरनेट पर भी यह अच्छा काम करता है।
- बात करते वक्त स्क्रीन पर केवल माइक, विडियो जैसे काफी कम ऑप्शन ही नजर आते हैं, जिससे एक्स्पीरिएंस बेहतर होता है।
- इसका मोबाइल ऐप भी काफी अच्छा है, लेकिन यह हाई स्पीड नेटवर्क पर बेहतर काम करता है।
ooVoo: चलता है जादू
- ओवो नाम भले ही अजीब लगे लेकिन विडियो चैट की दुनिया में यह भी जाना-माना नाम है।
- कई लोगों से एक साथ बात करने के लिहाज से यह काफी अच्छा ऐप्लिकेशन है।
- इसमें एक साथ 12 लोगों (6 विडियो और 6 ऑडियो चैट) से बात की जा सकती है।
- इसमें विडियो इफेक्ट जैसे ऑप्शन दिए गए हैं, जिनसे बात करते हुए आप स्क्रीन पर अपने चेहरे को अलग-अलग कैरक्टर्स में तब्दील कर सकते हैं।
- हाई डेफिनेशन विडियो के साथ चैट करने के लिहाज से यह बेहतर ऐप्लिकेशन साबित होता है।
- यहां पर विडियो कॉल रिकॉर्ड भी कर सकते हैं।
Tango : सुपर फ्रेंडली
- इस पर आप इंस्टेंट मेसेजिंग के साथ-साथ विडियो चैट भी कर सकते हैं।
- इसमें फोटो एडिटिंग के साथ ही फोटो शेयरिंग का ऑप्शन भी है, जो इसे और भी कूल बनाता है।
- टैंगो पर मौजूद गेम्स को आप डाउनलोड कर सकते हैं और मनचाहे वक्त पर इन्हें खेल सकते हैं।
- टैंगो दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के भी आपके कॉन्टैक्ट खंगालकर आपके सामने पेश करता है।
Fring :
मल्टि-प्लैटफॉर्म ऐप होने की वजह से अन्य सोशल मीडिया ऐप्स से कॉन्टैक्ट्स को यहां लाना आसान। साथ ही कम स्पीड में बेहतर परफॉर्मेंस।
Qik :
इन नए ऐप्लिकेशन में आप अपने विडियो चैट को सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लाइव स्ट्रीम कर सकते हैं।

Helthy window fast computer | 9 फ्री सॉफ्टवेयर्स, जो रखें विंडोज़ चुस्त-दुरुस्त

9 फ्री सॉफ्टवेयर्स, जो रखें विंडोज़ चुस्त-दुरुस्त
अपने कंप्यूटर पर बिना दिक्कत काम करने और डेटा समेत प्रिवेसी सुरक्षित रखने के लिए आपको सिर्फ विंडोज़ के साथ आने वाली यूटिलिटीज़ के भरोसे नहीं रहना चाहिए। आप आकार में छोटे, उपयोगी और मुफ्त में मिलने वाले सॉफ्टवेयरों की भी मदद ले सकते हैं। ऐसे ही सॉफ्टवेयरों के बारे में बता रहे हैं बालेन्दु शर्मा दाधीच:
1. WinPatrol
बिलिप स्टूडियोज़ का बनाया यह सॉफ्टवेयर आपके कंप्यूटर में होने वाले अनऑथराइज्ड बदलावों पर निगाह रखता है। अनऑथराइज्ड बदलाव वह हैं, जो किसी वायरस या स्पाइवेयर के जरिए किए जाते हैं। मसलन, किसी जरूरी सॉफ्टवेयर को डिसेबल कर देना या इंटरनेट ब्राउजर को हैक कर लेना। विनपट्रोल ऐसे बदलावों को भांपने में माहिर है और आपको ऐसी गड़बड़ करने वाले वायरस या सॉफ्टवेयर को डिलीट करने का मौका भी देता है। यह विंडोज के स्टार्ट-अप प्रोग्राम्स को हटाने और उनकी शुरुआत में देरी करने में भी सक्षम है, ताकि कंप्यूटर स्टार्ट होने में कम वक्त ले।
यहां से डाउनलोड कर सकते हैं : WinPatrol.com 2. Malwarebytes
अगर आपको अपने कंप्यूटर में वायरस, स्पाइवेयर या किसी दूसरी किस्म की सिक्यॉरिटी समस्या के मौजूद होने का अंदेशा है, तो यह छोटा-सा टूल उसे दूर कर सकता है। अगर ऐसा नहीं भी है, तो इसे इन्स्टॉल करके आप भविष्य में वायरस, स्पाइवेयर या कीलॉगर जैसे खतरों से अपने कंप्यूटर को बचा सकते हैं। आकार में छोटा यह एक बहुत ही मजबूत सिक्यॉरिटी प्रोग्राम है, जो फ्री डाउनलोड के लिए उपलब्ध है। अगर आपके सिस्टम में वायरस का इन्फेक्शन हो चुका है तो इसे किसी दूसरे सुरक्षित कंप्यूटर में डाउनलोड करें। इसके बाद इन्स्टॉलेशन फाइल को पेन ड्राइव में कॉपी कर लें और वहीं से डबल क्लिक करके इसे चलाएं। यह आपके सिस्टम में मौजूद मेलवेयर्स (नुकसानदेह सॉफ्टवेयर) का सफाया कर देगा। कई बार मेलवेयर प्रोग्राम इसे पहचानकर डिलीट करने की कोशिश भी कर सकते हैं, इसलिए सावधानी के तौर पर इसकी फाइल का नाम mbam.exe से बदलकर अपनी पसंद का कोई भी नाम कर लें। उसके बाद ही इसे चलाएं।
डाउनलोड पता: malwarebytes.org 3. Duplicate Files Searcher
अपनी फाइलों और फोल्डरों को सहेजने, बैक-अप लेने, दो कंप्यूटरों के बीच फाइलें लाते-ले जाते या कई बार कंप्यूटर फॉर्मैट करने के चलते आपके सिस्टम में कब एक ही फाइल की बहुत सारी कॉपीज़ हो जाती हैं, पता ही नहीं चलता। उनमें से कुछ बीच-बीच में एडिट भी हो जाती हैं, जबकि कुछ वैसी ही पड़ी रहती हैं। किसी समय जब एकदम सही फाइल की जरूरत पड़ती है, तो आप समझ ही नहीं पाते कि यह फाइल इस्तेमाल करें या वह। कौन-सी नई है, कौन-सी पुरानी, कौन-सी छोटी, कौन-सी बड़ी और कौन-सी सबसे ज्यादा अपडेटेड। इस समस्या का समाधान कर सकता है Duplicate Files Searcher, जो आपके सिस्टम में ड्यूप्लिकेट फाइलों को ढूंढता है, उनके बीच तुलना करता है, उन्हें खोलकर देखने का मौका देता है और गैरजरूरी फाइलों को डिलीट करने की सुविधा देता है। सब एक ही जगह से। सिर्फ हार्ड डिस्क ही क्यों, सीडी, पेन ड्राइव, डीवीडी आदि पर रखी फाइलों को भी यह दूसरी फाइलों के साथ कम्पेयर करके नतीजे दिखाता है। खास बात यह है कि अगर फाइलों के नाम अलग-अलग, मगर मैटर समान हो तो यह उसकी जानकारी भी दे सकता है।
डाउनलोड पता: tinyurl.com/3ubwjmg 4. Revo Uninstaller
अगर आप विंडोज में इन्स्टॉल किए गए किसी सॉफ्टवेयर को हटाना चाहते हैं, तो कंट्रोल पैनल में प्रोग्राम्स सेक्शन में जाकर उसे अनइन्स्टॉल कर सकते हैं। लेकिन इस प्रोसेस में उस सॉफ्टवेयर से जुड़ी हुई सारी फाइलें नहीं हटतीं, कुछ फिर भी बची रह जाती हैं। रेवो अनइन्स्टॉलर यह काम बखूबी करता है। वह ऐसे सॉफ्टवेयरों से जुड़ीं तमाम फाइलों, फोल्डरों और सेटिंग्स को मिटा देता है। इसका फ्री वर्जन एक महीने तक सभी फीचर्स के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है। रेवो आपके कंप्यूटर के स्टार्ट-अप के वक्त शुरू हो जाने वाले अनचाहे सॉफ्टवेयरों को रोकने और डिलीट करने में भी सक्षम है।
डाउनलोड पता: revouninstaller.com 5. Update Checker
ज्यादातर सॉफ्टवेयर कंपनियां अपने प्रॉडक्ट्स के नए-नए वर्जन और अपडेट जारी करती हैं, लेकिन बहुत कम यूजर बार-बार उनकी वेबसाइट्स पर जाकर देखने का वक्त निकाल पाते हैं। इस लिहाज से Update Checker आपके लिए उपयोगी साबित हो सकता है। यहां जाकर आप पता लगा सकते हैं कि आपकी जरूरत के सॉफ्टवेयर का कोई अपडेट तो नहीं आया।
डाउनलोड पता : filehippo.com/updatechecker 6. Disc Defrag
अगर आपने काफी वक्त से अपनी हार्ड डिस्क को डिफ्रैग या फॉर्मैट नहीं किया है, तो इस बात की आशंका है कि उसमें रखा डेटा इधर-उधर बिखर गया हो। हार्ड डिस्क के सही ढंग से ऑर्गेनाइज्ड न होने से कंप्यूटर धीमा पड़ जाता है। इस समस्या का समाधान है Disc Defrag नामक टूल, जो विंडोज़ में भी मौजूद है। बहरहाल, Auslogics कंपनी द्वारा बनाया Disc Defrag काम ज्यादा अच्छे ढंग से और यूजर को उलझाए बिना करता है। इसमें आपकी हार्ड डिस्क में डेटा स्टॉरेज की मौजूदा हालत को ग्राफिकल स्टाइल में देखने की सुविधा भी है। दो-चार महीने में एक बार इसे इस्तेमाल कीजिए और अपना सिस्टम भीतर से साफ-सुथरा और तेजतर्रार बनाए रखिए।
डाउनलोड पता : auslogics.com/en/software/disk-defrag 7. Stickies
जॉर्न सॉफ्टवेयर का स्टिकी असल में स्टेशनरी की दुकान पर मिलने वाले पीले रंग के स्टिकी नोट्स (पोस्ट इट) पर आधारित है। अगर आप भी अधूरे पड़े कामों, जरूरी तारीखों, बैठकों आदि को भूल जाते हैं तो यह सॉफ्टवेयर इस समस्या को हल करने में मदद करेगा। आम सॉफ्टवेयर्स के उलट, स्टिकीज के जरिए बनी फाइलों को अलग से खोलने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि वे खुली हुई ही कंप्यूटर मॉनिटर की स्क्रीन पर चिपकी रहती हैं, मानो मॉनिटर पर जरूरी कामों की सूची लिखकर चिप्पी चिपका दी हो। इन चिप्पियों को आसानी से इधर-उधर खिसकाया, मिनीमाइज या बंद भी किया जा सकता है। आप उन्हें हमेशा खुला न रखना चाहें तो बंद कर दें और हर हफ्ते, महीने या तीन महीने में दिखाई देने की सेटिंग कर दें। दो बजे की बैठक की सूचना डेढ़ बजे चाहिए, तो डेढ़ बजे का वक्त तय कर दें, वह समय आते ही स्टिकी नोट स्क्रीन पर उभर जाएगा। यह सॉफ्टवेयर इन्स्टॉल करने के बाद आपको न किसी की बर्थडे भूलने की जरूरत रहेगी और न ही जरूरी काम।
डाउनलोड पता: zhornsoftware.co.uk/stickies 8. FontViewOK
अगर आपने भी फॉन्ट्स का अच्छा-खासा कलेक्शन बना लिया है और अपने डॉक्युमेंट्स में आकर्षक फॉन्ट्स का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं, तो सही वक्त पर सही फॉन्ट चुनने में खासी मशक्कत करते होंगे। हालांकि माइक्रोसॉफ्ट वर्ड में फॉन्ट्स के नामों के साथ-साथ उनके डिजाइनों पर एक नजर डालने की व्यवस्था है, लेकिन इसमें और कोई फीचर्स नहीं हैं। जबकि इस सॉफ्टवेयर में आप अपनी पसंद का कोई भी टेक्स्ट अलग-अलग फॉन्ट्स में देखकर उनके बीच तुलना भी कर सकते हैं। इसके लिए सॉफ्टवेयर में दो अलग-अलग विंडोज़ भी बनाने की सुविधा है। एक तरफ एक फॉन्ट का टेक्स्ट और दूसरी तरफ दूसरे फॉन्ट का टेक्स्ट देखकर आप अपनी पसंद के फॉन्ट का चुनाव बेहतर ढंग से कर पाएंगे। इस सॉफ्टवेयर को पहली बार इस्तेमाल करते समय आपको अपने फॉन्ट्स की लोकेशन बतानी होती है, जो ज्यादातर विंडोज कंप्यूटरों में C:\Windows\Fonts होती है।
डाउनलोड पता : softwareok.com 9. Unlocker
विंडोज़ पर कई बार आप किसी फाइल को डिलीट करने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। विंडोज़ से मेसेज बॉक्स उभरता है कि यह फाइल इस या उस वजह से डिलीट नहीं की जा सकती। अनलाकर सॉफ्टवेयर की मदद से आप ऐसी ढीठ फाइलों से मुक्ति पा सकते हैं। यह पहले उन्हें अनलॉक करेगा और फिर आपसे पूछेगा कि क्या आप इसे डिलीट करना चाहते हैं? आपने हां किया नहीं कि फाइल डिलीट।
डाउनलोड पता: http://lockhunter.com/

Slow computer |कंप्यूटर की सुस्ती से परेशान हैं,

कंप्यूटर की सुस्ती से परेशान हैं,
कंप्यूटर बिना आपके ऑर्डर के न तो काम शुरू करता है और न ही बंद होता है। किसी भी विंडो को क्लोज करने से पहले भी यह यूजर की सहमति मांगता है- 'डू यू वॉन्ट टु सेव द चेंजेज'। यूजर के पास तीन ऑप्शन होते हैं- यस, नो और कैंसल। इनमें से किसी एक ऑप्शन पर क्लिक करते ही आप उम्मीद कर सकते हैं कि यह मशीन आपके कमांड के अनुसार फौरन ऐक्शन शुरू कर दे। अगर कंप्यूटर ने आपके आदेश को मानने में चंद सेकंड की देरी की तो मान लें कि आपकी इस स्पीड मशीन का सिस्टम स्लो है। फिर आप फौरन इस समस्या से निबटने की तरकीबें ढूंढना शुरू कर दें, वरना कंप्यूटर का यह मर्ज 'हैंग' के रूप में दिखने लगेगा। इसके बाद ऐसे सिस्टम पर काम करने में मुश्किल आएगी।
कब मानें कंप्यूटर है स्लो?
एक्सपर्ट नलिन गौड़ का कहना है कि सिस्टम को स्लो या फास्ट कहने का कोई मानक तय नहीं है। नीचे लिखी सूरतों में आप मान सकते हैं कि पीसी स्लो है:
- जब कंप्यूटर ऑन करते हैं तो उसके शुरू होने में एक मिनट से ज्यादा वक्त लगे।
- ऐप्लिकेशन के यूज के दौरान डायलॉग बॉक्स के स्क्रीन पर दिखने में 15 सेकंड से ज्यादा समय लगे यानी किसी चीज पर क्लिक करने के बाद उसके ओपन होने में बहुत वक्त लगे।
- कमांड देने के बाद विंडो 10 सेकंड तक ओपन न हो।
स्लो होने की खास वजहें:
1. RAM की कपैसिटी कम होने और ऐप्लिकेशन का बोझ बढ़ने से
2. सिस्टम वायरस की चपेट में आने से
3. नकली या फिर बिना लाइसेंस वाले सॉफ्टवेयर का यूज करने से
4. नए ऐप्लिकेशन और सीपीयू की स्पीड में तालमेल नहीं होने
5. एक साथ कई ऐप्लिकेशंस पर काम करने से
6. गेम्स और साउंड व हेवी पिक्चर वाले स्क्रीनसेवर भी कंप्यूटर की स्पीड को कम कर देते हैं
मेमरी में है दम तो प्रॉब्लम होगी कम
माइक्रोटेक सिस्टम के डायरेक्टर एस. सी. जैन के अनुसार ज्यादातर RAM की कपैसिटी कम होने और वर्क लोड लगातार बढ़ने की वजह से कंप्यूटर की स्पीड कम हो जाती है। इसलिए यूज के हिसाब से RAM की कपैसिटी बढ़ानी चाहिए। दरअसल क्वॉर्क, फोटोशॉप, विडियो प्लेयर जैसे कई ऐप्लिकेशन स्पेस के भूखे होते हैं। इन पर काम करने के साथ ही मेमरी में स्पेस कम होता जाता है। इस दौरान जब कई सॉफ्टवेयर पर एक साथ काम किया जाता है, तब कंप्यूटर के हैंग और स्लो होने का खतरा बढ़ जाता है। बकौल जैन, 2 जीबी की RAM, 3 मेगाहर्ट्ज की स्पीड में चलने वाला सीपीयू और 160 से 320 जीबी तक की हार्ड डिस्क से लैस कंप्यूटर में स्लो या हैंग होने की दिक्कत कम आती है। ऐसे कंप्यूटर पर जनरल प्रोग्राम्स के साथ इंटरनेट से कंटेंट डाउनलोडिंग के अलावा विडियो-ऑडियो प्रोग्राम्स को भी चलाया जा सकता है।
कैसे जानें यूजर स्पेस का हाल
जब हम एक साथ कई ऐप्लिकेशंस को ऑपरेट करते हैं तो मेमरी स्पेस कम हो जाता है। इसलिए जब कंप्यूटर स्लो होने लगे तो चेक करें कि कौन सा ऐप्लिकेशन प्रॉसेसर को रोक रहा है या कितने स्पेस का यूज हो रहा है। चेक करने का तरीका आसान है:
स्टेप1 - CRTL+ ALT + DEL करें, एक नई विंडो स्क्रीन सामने आएगी। इसमें टास्क मैनेजर पर क्लिक करें।
स्टेप 2 - फिर उसमें 'प्रॉसेसेज' का बटन क्लिक करें।
स्टेप 3- स्क्रीन पर एक लिस्ट दिखेगी, अब मेम. यूसेज पर क्लिक करें। फाइलें अरेंज हो जाएंगी। अब फाइल्स और ऐप्लिकेशन की साइज के मुताबिक अपनी फौरी प्राथमिकता तय करें यानी यह तय करें कि फिलहाल किस ऐप्लिकेशन को बंद किया जा सकता है और किसे नहीं।
स्टेप 4 - फिर उस ऐप्लिकेशन को बंद करें, कंप्यूटर की स्पीड बढ़ जाएगी।
स्लो कंप्यूटर से बचना हो तो-
1. आपके कंप्यूटर की सी ड्राइव में कम-से-कम 300 से 500 एमबी फ्री स्पेस हो। इसे देखने के लिए माई कंप्यूटर पर क्लिक करें, उसमें सी ड्राइव जहां लिखा है, उसके सामने स्पेस की जानकारी मिल जाती है।
2. अगर सी ड्राइव में स्पेस फुल हो तो वहां पड़ी बेकार की फाइलें और प्रोग्राम्स को डिलीट कर दें।
3. अगर सी ड्राइव की मेमरी में 256 एमबी से कम स्पेस बचा है तो गेम्स न खेलें।
4. हार्ड ड्राइव को अरेंज करने के लिए महीने में एक बार डिस्क फ्रेगमेंटर जरूर चलाएं। यह आपकी हार्ड डिस्क में सेव की गई अव्यवस्थित फाइलों और फोल्डरों को अल्फाबेट के हिसाब से दोबारा अरेंज करता है।
कैसे चलाएं डिस्क फ्रेगमेंटर
Start /Programmes / Accessories / System tool / Disk fragmenter पर क्लिक करने के बाद विंडो स्क्रीन पर आएगा। फिर उसमें Defragment ऑप्शन पर क्लिक करें। डिस्क क्लीनर के ऑप्शन पर क्लिक करते ही टेंपररी और करप्ट फाइलें इरेज हो जाती हैं।
5. अगर एक सिस्टम में दो विडियो ड्राइवर (मसलन, विंडो मीडिया प्लेयर और वीएलसी प्लेयर) हैं तो बारी-बारी उनका यूज करें, दोनों को एक साथ बिल्कुल न चलाएं।
6. किसी नए विंडो सॉफ्टवेयर को रीलोड करने से पहले उसके पुराने वर्जन को डिलीट करें।
7. इंटरनेट से ऐंटि-वायरस और प्रोग्राम डाउनलोड करने से परहेज करें, डुप्लिकेट ऐंटि-वायरस प्रोग्राम्स को करप्ट (खत्म) कर सकता है।
8. पुराने सॉफ्टवेयर पर नए प्रोग्राम्स को रन न करें।
9. नए प्रोग्राम के हिसाब से सॉफ्टवेयर लोड कर अपने सिस्टम को अपडेट करें।
10. जब एक साथ तीन सॉफ्टवेयर प्रोग्राम चल रहे हों तो इंटरनेट को यूज न करें।
11. जब सिस्टम स्लो होने लगे तो लगातार कमांड न दें वरना कंप्यूटर हैंग हो सकता है।
12. पेन ड्राइव यूज करते समय ध्यान रखें कि वह कहीं अपने साथ वायरस तो आपके कंप्यूटर से शेयर नहीं कर रहा है। पेन ड्राइव को सिस्टम से अटैच करने के बाद ओपन करने से पहले स्कैन करें। अगर आपके सिस्टम में इफेक्टिव ऐंटि-वायरस नहीं है, तो पेन ड्राइव को फॉर्मेट भी किया जा सकता है। फॉर्मेट करना बेहद आसान है। पेन ड्राइव का आइकन कंप्यूटर पर आते ही उस पर राइट क्लिक करें। फॉर्मेट का ऑप्शन आ जाता है। मगर ध्यान रखें कि फॉर्मेट करने पर पेन ड्राइव का पूरा डेटा डिलीट हो जाता है।
13. बीच-बीच में सिस्टम से टेंपररी इंटरनेट फाइल्स को भी डिलीट करना जरूरी है। इसके लिए ब्राउजर ( इंटरनेट एक्सप्लोरर या मोजिला) ओपन करते ही ऊपर की तरफ टूल्स का ऑप्शन लिखकर आता है। उस पर क्लिक कर इंटरनेट ऑप्शन को चुन लें। ऐसा करते ही एक नया विंडो खुलेगा, जिसमें एक ऑप्शन ब्राउजिंग हिस्ट्री और कुकीज को डिलीट करने का भी होगा। इस पर क्लिक करते ही टेंपरेरी फाइल्स डिलीट हो जाती हैं।
बायोस चेक करें
कंप्यूटर कारोबारी और सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल त्यागी के मुताबिक आपके सिस्टम में कौन-कौन से सॉफ्टवेयर हैं और उनका कॉनफिगरेशन क्या है, इस बारे में जानकारी के लिए बायोस चेक करें। कंप्यूटर ऑन करने के बाद और विंडो के अपलोड होने से पहले जब स्क्रीन ग्रे शेड की होती है और एक कर्सर ब्लिंक कर रहा होता है, उस समय F2 कमांड दें। सिस्टम का सारा कन्फीगरेशन आपके सामने होगा। अगर किसी सॉफ्टवेयर में एरर है, तो कंप्यूटर इस बारे में भी बताएगा।
वायरस को बाहर निकालो!
जेटकिंग से जुड़े एक्सपर्ट संजय भारती के मुताबिक वायरस चेक करने के लिए कंप्यूटर स्कैन करें। हालांकि कंप्यूटर में ऐक्टिव वायरस होने पर वंर्किंग के दौरान ही दिक्कतें आने लगती हैं। वायरस का नाम भी स्क्रीन पर कोने में आने वाले पॉप अप विंडो के जरिए आने लगता है। इसके अलावा वायरस होने पर तमाम फाइल और फोल्डर्स के डुप्लिकेट बनने लगते हैं। कई फोल्डर्स में ऑटो रन की फाइल अपने आप बन जाती है। बिना कमांड के अनवॉन्टेड फाइलें खुलने और बनने लगेंगी। जब कंप्यूटर इंटरनेट से कनेक्ट हो और लगातार ऐंटि-वायरस लोड करने की गुजारिश की जा रही हो तब मान लीजिए कि वायरस अटैक हो चुका है।
- सिस्टम से वायरस को हटाने के लिए ओरिजिनल ऐंटि-वायरस लोड करें, यह पूरे कंप्यूटर में वायरस को ढूंढकर खत्म करेगा।
- कॉम्बो फिक्स, अविरा, नॉरटन, साइमेनटेक, मैकेफी जैसे कई पॉप्युलर ऐंटि वायरस मार्केट में एक से दो हजार रुपये की प्राइस रेंज में मिल जाते हैं। एक साल के लिए मिलने वाले इन ऐंटि-वायरस को ऑनलाइन अपडेट भी किया जाता है।
- इंटरनेट से फ्री में डाउनलोड होने वाले ऐंटि-वायरस की वैलिडिटी तय होती है। कई बार सिर्फ ट्रायल वर्जन ही मिलता है, इसलिए इंटरनेट से ऐंटि-वायरस उधार न लें तो बेहतर है।
- अगर हार्डवेयर में प्रॉब्लम हो तो जिस कंपनी का प्रॉडक्ट हैं, वहां संपर्क करें। कई कंपनियां सिस्टम और पार्ट्स की गारंटी या वॉरंटी देती हैं, इस फैसिलिटी का उपयोग करें। एक्सपर्ट कंपनी के पार्ट्स को विश्वसनीय मानते हैं हालांकि नेहरू प्लेस, वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया या लोकल मार्केट से सिस्टम को दुरुस्त कराने में जेब कम हल्की होगी।

Why can best 64bit oprating system | 64 बिट ऑपरेटिंग सिस्टम ही है सही

64 बिट ऑपरेटिंग सिस्टम ही है सही
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि कोई खास सॉफ्टवेयर आपके विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करने से इनकार कर दे और मेसेज आए कि यह सॉफ्टवेयर 32 बिट का है जो आपके 64 बिट ऑपरेटिंग सिस्टम पर नहीं चल सकता?
आमतौर पर 64 बिट कंप्यूटर 32 बिट की तुलना में सस्ते होते हैं। ऐसे में सीमित बजट वाले लोग 64 बिट कंप्यूटर का चुनाव कर लेते हैं। मजबूरी में ही सही, लेकिन उन्होंने सही चुनाव किया होता है, क्योंकि 64 बिट कंप्यूटर आर्किटेक्चर ज्यादा आधुनिक, ताकतवर और तेज-तर्रार है, बनिस्पत 32 बिट के। कंप्यूटर खरीदने के बाद कई बार आपके पुराने सॉफ्टवेयर नए कंप्यूटर पर नहीं चलते। यही बात उन लोगों के साथ भी है, जिनके पास 32 बिट कंप्यूटर है और उन्होंने गलती से उस पर 64 बिट सॉफ्टवेयर चलाने की कोशिश की है। ज्यादातर 32 बिट सॉफ्टवेयर 64 बिट कंप्यूटरों में चल सकते हैं, लेकिन 64 बिट सॉफ्टवेयर 32 बिट कंप्यूटर या ऑपरेटिंग सिस्टम में नहीं चलेंगे, बशर्ते आपने कोई जुगाड़ न किया हो।
क्या है 64 बिट और 32 बिट
कंप्यूटर में होने वाली सारी कैलकुलेशन और प्रोसेस माइक्रोप्रोसेसर के जरिये पूरी होती हैं, जिसे प्रोसेसर या चिप भी कहते हैं। यह एक चौकोर हार्डवेयर कम्पोनेन्ट है, जो कंप्यूटर के सीपीयू टावर के भीतर मदरबोर्ड में फिट होता है। किसी भी प्रोसेसिंग के लिए यह डेटा प्राप्त करता (इनपुट) है और प्रोसेसिंग के बाद डेटा प्रदान (आउटपुट) करता है। वह एक साथ कितना डेटा प्राप्त और प्रोसेस कर सकता है, उस पर कंप्यूटर की कुशलता निर्भर करती है।
फर्क प्रोसेसिंग का
32 बिट कंप्यूटर का माइक्रोप्रोसेसर एक साथ 32 बिट डेटा ग्रहण कर सकता है, जबकि 64 बिट माइक्रोप्रोसेसर उसका दोगुना डेटा। यानी 64 बिट माइक्रोप्रोसेसर से लैस कंप्यूटर दोगुनी रफ्तार से काम करने में सक्षम है। 64 बिट कंप्यूटरों में मल्टि-कोर प्रोसेसर भी उपलब्ध हैं, जैसे ड्यूल कोर, क्वाड कोर, ऑक्टा कोर वगैरह। इनका अर्थ यह हुआ कि एक ही चिप पर कई माइक्रोप्रोसेसर या चिप एक साथ लगे होते हैं। ड्यूल कोर का मतलब है, दो कोर या दो माइक्रोप्रोसेसर जबकि क्वाड कोर का मतलब है चार कोर या चार माइक्रोप्रोसेसर। अगर आपका 64 बिट कंप्यूटर क्वाड कोर से लैस है तो सामान्य 32 बिट कंप्यूटर की तुलना में उसकी प्रोसेसिंग पावर (64, 64, 64, 64) आठ गुना हो जाती है।
फर्क रैम का
रैम कंप्यूटर के सीपीयू टावर में मदरबोर्ड के भीतर फिट होने वाला एक कंघीनुमा हार्डवेयर है, जिसका काम है कंप्यूटर सॉफ्टवेयरों के इस्तेमाल में आने वाले डेटा को सहेजना। हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और ऑपरेटिंग सिस्टम कई तरह का डेटा इस्तेमाल करते हैं। इस डेटा को प्रोसेसिंग से पहले और बाद में किसी जगह अस्थायी रूप से सहेजने की जरूरत पड़ती है। इस काम के लिए एक तेजतर्रार स्टोरेज मीडियम चाहिए। रैम यही काम करती है। रैम जितनी ज्यादा होगी, अस्थायी रूप से निर्मित होने वाले डेटा को सहेजने का काम उतनी तेजी से होगा। रैम कम होने पर कंप्यूटर की रफ्तार घट जाएगी।
32 बिट कंप्यूटरों का आर्किटेक्चर ऐसा है कि उनमें सिर्फ 4 जीबी तक रैम का इस्तेमाल कर सकते हैं। 32 बिट के सॉफ्टवेयरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रैम इससे भी कम है, यानी करीब 3.2 गीगाबाइट। आप ऐसे कंप्यूटर में 4 जीबी से ज्यादा रैम इस्तेमाल नहीं कर सकते। दूसरी तरफ 64 बिट कंप्यूटरों में रैम की अधिकतम मात्रा असीमित हो जाती है।
अब आप दोनों तरह के आर्किटेक्चर की तुलना करके देख लीजिए। यही वजह है कि विडियो एडिटिंग, ऐनिमेशन, 3डी ग्राफिक्स जैसे सॉफ्टवेयरों में, जिनमें बहुत ज्यादा डेटा बनता और प्रोसेस होता है, 64 बिट कंप्यूटरों का इस्तेमाल होता है। न सिर्फ प्रोसेसर की ताकत की वजह से, बल्कि रैम की वजह से भी।
फर्क सॉफ्टवेयरों का
सभी ऑपरेटिंग सिस्टम धीरे-धीरे 32 बिट से मुक्ति पाकर 64 बिट की तरफ बढ़ रहे हैं इसलिए 64 बिट आर्किटेक्चर पर चलने वाले सॉफ्टवेयरों का भी विकास होने लगा है। ऐसे सॉफ्टवेयर ज्यादा रैम का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं इसलिए तेज चलते हैं। जब आप 64 बिट के लिए बने सॉफ्टवेयर को 32 बिट कंप्यूटर में चलाने की कोशिश करते हैं तो उन्हें अपनी जरूरतों के लिए सही मात्रा में रैम और प्रोसेसर का अभाव दिखाई देता है और वे चलते नहीं।
तो कौन सा कंप्यूटर लें?
आपको नया कंप्यूटर लेते वक्त 64 बिट के ऑप्शन का ही चुनाव करना चाहिए। इसमें आपके पुराने सॉफ्टवेयर तो ज्यादातर चल ही जाएंगे, भविष्य में आने वाले तमाम सॉफ्टवेयर ऐसे हो सकते हैं जो शायद सिर्फ 64 बिट कंप्यूटरों पर ही काम करें।
कौन सा है आपका ऑपरेटिंग सिस्टम
अगर आपको यह जानना है कि आपका विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम 64 बिट है या 32 बिट, तो कंट्रोल पैनल में जाकर सिस्टम पर क्लिक करें। यहां View amount of Ram and Processor Speed पर क्लिक करें। आपके कंप्यूटर का ब्यौरा दिखाई देगा, जिसमें न सिर्फ 32 बिट या 64 बिट आर्किटेक्चर की बात साफ हो जाएगी, बल्कि कंप्यूटर में कितनी रैम है और कौन सा प्रोसेसर लगा है, यह भी दिखाई देगा।

Low data use | data bchane ya kam khapat wala browser OPERA | ओपेरा मिनी browser

ओपेरा मिनी
Ye data pack bchane kabehhtar browser he
Android par jarur use kare
Eske kai verson he
par
Opera mini best he.
ओपेरा मिनी, भारत में सबसे अधिक उपयोग होने वाले मोबाइल वेब ब्राउज़रों में से एक है और यह 13 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है. यह वेबपेजों को उनके मूल आकार से 10% तक कंप्रेस कर देता है, जिससे डेटा की खपत कम होती है और मोबाइल फ़ोन से वेब एक्सेस करने पर कम खर्चा आता है. कंप्रेस करने का एक और लाभ यह है कि इससे वेबपेज बहुत तेज़ी से खुलते हैं.
ओपेरा मिनी की विशेषताएँ नीचे लिखे हैं:
स्पीड डायल: आप अपने ओपेरा मिनी स्पीड डायल में पसंदीदा वेबसाइटों को सहेज सकते हैं और बस एक हल्के टैप से वेबसाइटों को आसानी से एक्सेस कर सकते हैं.
स्मार्ट पेज: ओपेरा मिनी एकमात्र ऐसा ब्राउज़र है जो फेसबुक और ट्विटर की तरह सोशल नेटवर्किंग साइट्स के अपडेट को ब्राउज़र के स्मार्ट पेज में तुरंत दिखाता है.
डाउनलोड मैनेजर: आप ओपेरा मिनी के डाउनलोड मैनेजर से ब्राउज़िंग के दौरान डाउनलोड को रोक, फिर से शुरू और प्रबंधित कर सकते हैं.
नाईट मोड: ओपेरा मिनी में एक नाईट मोड है, जो अधिक गहरे रंगों का उपयोग करके चमकदार स्क्रीन के प्रभावों को हल्का कर देता है, जिससे आपकी आँखों पर ज़ोर नहीं पड़ता.
प्राइवेट ब्राउज़िंग: ओपेरा मिनी प्राइवेट टैब की सुविधा देता है, जिससे आप फ़ॉर्म विवरण और ब्राउज़िंग इतिहास को संग्रहीत किए बिना वेब ब्राउज़ कर सकते हैं.
ओपेरा मिनी ही एकमात्र ऐसा वेब ब्राउज़र है, जो 3,000 से अधिक प्रकार के साधारण फ़ोन और स्मार्टफ़ोन पर स्मूद और तेज़ ब्राउज़िंग अनुभव प्रदान करता है. इनमें Java, BlackBerry, Symbian, iOS और Android फ़ोन शामिल हैं. आप अपने फ़ोन से m.opera.com पर जाकर ओपेरा मिनी डाउनलोड कर सकते हैं.

How to we a best computer user | यह तरीके बनायेगें अापको कम्‍प्‍यूटर पर तेज, स्‍मार्ट और सुरक्षित

Computer  पर काम करने तथा "तेज, स्‍मार्ट और सुरक्षित" काम करने में बहुत फर्क है और वह फर्क है जानकारी का, Computer के बारे में बहुत सारी चीजें ऐसी होती है, जिसकी जानकारी हमें नहीं होती हैं, अगर इनके बारे में हमें पता हो और इनकी ठीक से प्रैक्टिस की जाये तो हम भी Computer  में expert बन सकते हैं, आज हम आपको ऐसी ही कुछ जानकारियॉ दे रहे हैं-
1-File and Folder management
Computer पर काम करने में  File and Folder management बहुत जरूरी है, अगर आपके कम्‍प्‍यूटर में File and Folder ठीक प्रकार से नहीं बने हैं, तो आपको File and Folder Search करने में हमेशा परेशानी होगी, बेहतर होगा, कि आप अपनी File and Folder को ठीक प्रकार नाम से सेव करें, जैसे :- अगर आप के कम्‍प्‍यूटर में MP3 गाने हैं तो उनको Category wise लगा दीजिये, नये गाने एक Folder में पुराने गाने एक Folder  में उसमें भी उनको अलग-अलग कर लीजिये, जैसे गजल, भजन, सूफी, इत्‍यादी जिससे उनको Search करने में आसानी हो।
2-Please use cloud storage
क्‍लाउड स्‍टोरेज, Internet का दिया गया एक और श्‍ाानदार तोहफा है, यह एक एेसा तरीका है, जिससे अपनीसभी जरूरी फाइलों को जैसे डाक्‍यूमेन्‍ट, फोटो, म्‍यूजिक, वीडियो आदि को कम्‍प्‍यूटर के साथ साथ Internet पर भी सेव करके रख सकते हो, इससे एक तरीके से आपका कम्‍प्‍यूटर हमेशा आपके साथ रहता है, बहुत कम्‍पनियॉ क्‍लाउड स्‍टोरेज सेवाFree में उपलब्‍ध करा रही हैं, जैसे - Google drive  पर आप 15 Gb तक डाटा स्‍टोर कर सकते हैं, इस सेवा का सबसे बडा फायदा यह है कि आपके कम्‍प्‍यूटर का सारा डाटा हमेशा आपके साथ रहता है, चाहे आप जहॉ भी हों।
3 -Compress Large Files to save Hard Disk Space
Folder management और क्‍लाउड स्‍टोरेज सेवा के अलावा Hard Disk का Space बचाना भी जरूरी होता है, इसके लिये आप WinRAR का प्रयोग कर सकते हैं, इससे सबसे बडा फायदा यह होता है, इससे आप कम्‍प्‍यूटर (Computer) की फाइलों (Files) को कॉम्‍प्रेस (Compress) करने के साथ-साथ (password protect) पासवर्ड सुरक्षा भी दे सकते हो।
4-Save yourself from phishing on the Internet
Computer होगा तो Internet भी होगा, इसलिये अपने कम्‍प्‍यूटर के लिये एडवांस सिस्‍टम केयर टिप्‍स तैयार रखें और मैलवेयर,  फ़िशिंग  और हैकिंग  के बारे में अच्‍छी तरह से जानकारी ले लें और सुरक्षा भी उपाय कर लें। एक अच्‍छा एंटीवायरस अवश्‍य कम्‍प्‍यूटर में डाल लें और समय-समय पर अपडेट करते रहें।
5-Also remember typing shortcut
Computer में expert बनने के लिये आपको अपने कम्‍प्‍यूटर Keyboard को जानना भी बहुत जरूरी है, साथ ही साथ टाइपिंग के लिये की-बोर्ड भी याद कर लीजिये, इससे आपको तेजी से टाइपिंग करने में सहायता मिलेगी, जहॉ आप माउस का प्रयोग करते हैं, वहॉ सीधे-सीधे Keyboard से काम हो जायेगा और समय की बचत भी होगी। 
6-Learn more about the Internet
आज का युग Internet का युग है, इसलिये Internet के बारे में अच्‍छी प्रकार से जानकारी कर लीजिये, कि श्रेष्‍ठ/निशुल्‍क ईमेल प्रदाता कौन-कौन हैं जीमेल और हॉटमेल नई ई मेल कैसे बनाई जाती है, गूगल ईमेल अलर्ट कैसे बनाया जाता है, कुकी क्‍या होती है अगर आपका पासवर्ड आपके ब्राउजर पर सेव हो गया है तो उसके कैसे मिटाया जाता है, या दो जीमेल एकाउन्‍ट एक ही समय में कैसे प्रयोगकिये जाते हैं। अगर आप हिन्‍दी भाषी हैं तो hindi search engine के बारे में भी जानकारी रखिये जिससे आप नई जानकारी अपनी भाषा में सर्च करा सकें। गूगल मैप के बारे में भी जानिये।
7-Get information about windows
windows हमारे कम्‍प्‍यूटर परिचालन में सहायक होता हैं, इसके बारे में भी जानकारी लेना बहुत जरूरी होता है, जैसे विण्‍डोज में पासवर्ड कैसे  सैट किया जाता है, समय बचाने के लिए हाइबरनेट का उपयोगकैसे किया जाता है,विण्‍डोज 7 में किसी भी फाइल को उसके कन्‍टेन्‍ट  से कैसे सर्च किया जाता है, इसके अलावा विण्‍डोज के ढेरों टिप्‍स आप यहॉ क्लिक कर पढ सकते हैं।

Type of search engine सर्च इंजिन एवं प्रकार वेब पेज सर्च इंजिन के नाम गुगल सर्च खोज सर्च याहू सर्च आस्क सर्च बींग सर्च

सर्च इंजन एक विशेष प्रोग्राम होते है, जो वेब तथा अन्य सूचना वेबसाईट विडीयो ढुढते है।
ये एक की वर्ड द्वारा उस की से सम्बन्धित पेजो को विशाल बक्से (होस्टर ) से ढुंढ कर लाते है।
अगर आपने जिस वर्ड की से सर्च कर रहे है वह पहले से आप या अन्य द्वारा  इंजन से जोडा नही गया है तो वह किसी पेज को खोज नही पाता है।
कई सर्च इंजन कई भाषाओ को स्पोर्ट नही करते है।
सबसे बडा सर्च इंजन
गुगल सर्च है।
सर्च इंजन कई प्रकार के होते है।
जेसे मात्र विडियो खोजने वाला युटब जहा ऊपर हम अपने विडियो खोजने कोई शब्द डालते मूवी नाम लिखते है।
इसी प्रकार कई न्युज वेबो के भी अपने सर्च इंजन होते है।
लगभग हर वेब मे सर्च इंजन होते है।
ये नीजि कहलाते है।
कुछ सर्च इंजन के बारे मे
गुगल सर्च
इस पर हम हर प्रकार कि वेब ढुंढ सकते है ये
विशाल मात्रा मे वेबो को सगृहित करने वाला सर्च इंजन है
इसीलिए इस पर ज्यादा लोग वेब विडियो सर्च करते है।
यहा वेब न्यूज विडियो भु-भाग ढुंढ सकते है
नई सुविधा के तहत खोया हुआ फोन ढुंढने मे भी यह मदद करता है।
याहू सर्च
यह गुगल के बाद दुसरा बडा सर्च इंजन है।
यहा न्युज वेब चित्र मौसम इत्यादि ढुंढ सकते है।
आस्क सर्च
रेडिफ सर्च
बींग सर्च
मेटा सर्च इंजिन
ये किसी विशेष विषय से सम्बन्धीत होते है
हिन्दुस्तान नेट
www.hindustan.net
www.indiabook.com
विशेष सर्च इंजिन
पर्यावरण पर सर्च - www.eco-web.com
फैशन - infomat.com
दवा - www.medsite.com

सोशल नेटवर्किंग फेसबुक ट्वीटर लिंकडीन क्लासमेट्स

आजकल कई सोशल सम्पर्क प्रोवाईडर है
पर बेहत्तर एवं चुनिनन्दा सोशल नेटवर्क
इंटरफेस
जैसे
फेसबुक facebook.com मिलन स्कुल छात्र के लिए निर्मित
गुगल प्लस googl plus
क्लासमेट classmates.com
                Flicker.com तस्वीरो के आदान -प्रदान
                Frindster.com मित्र, सामान्य
                MySpace.com मित्र सामान्य
                Twitter.com सामान्य सोर्ट और सिमित खुले सन्देश के लिए
                 Linkdin.com व्यापारिक एवं समान रुचि
                 Meetup.com एक रुचि के समुह मित्रो के लिए।
है।
सब कि डिजाईन व सुधाए अलग एवं अपने आप मे बेहत्तर है।
वाट्सऐप
वाईबर
हाईक
स्केप
ये भी सोशल संसार माध्यम है
पर है विशेष विडियो काम्फ्रेस विडियो काॅल के लिए बने है।
ईमेल भी सोशल संसार माध्यम है जिनका कार्य
पत्र और सन्देश भेजना है साथ हि फाईल भेजने का कार्य भी करते है
गुगल मेल व
आउटलूक मेल से हम
आॅफिस फाईल एक्सेल वर्ड पब्लिस इत्यादि सिधे बना सकते है आॅनलाईन बिन साॅफ्टवेयर के।
कुछ प्रसिद्ध मेल सेवा प्रदाता
जीमेल
याहूमेल
आउटलूक होट मेल
रेडिफ
इसके अलावा भी कई सेवा प्रदाता युजर को मेल आईडी प्रदान करते है जैसे
लाईव जनरल
वेबदुनिया।

इंटरनेट का इतिहास व कार्य

इंटरनेट का आरम्भ सन् 1969 से हुआ। जब अमेरिका ने एक परियोजना के लिए राशि प्रदान कि जिससे
एडवांसड रिचर्स प्रोजेक्ट एजेंसी नेटवर्क नामक राष्ट्रीय कम्पयूटर को विकसित किया गया।
इंटरनेट एक विशाल नेटवर्क है जो विश्व के छोटे- छोटे अनेक नेटवर्को को एक साथ जोडता है।
1991 में स्वटजरलैंड में सेंटर फाॅर युरोपियन न्यूक्लियर रिसर्च
मे पहली बार वेब को पेश किया गया था। वेब से पहले, इंटरनेट मे केवल टेक्स्ट का उपयोग होता था - किसी प्रकार के ग्रफिक्स, एनीममेशन, आवाज, या वीडियो का नही।
वेब ने इससे इन सभी विशेषताओ को भी शामिल किया। इसने इंटरनेट पर उपल्ब्ध संसाधनो के लिए एक मल्टीमिडिया इंटरफेस प्रदान किया।
इन प्रारम्भिक शोधों कीं शुरुआत होने के फलस्वरुप इंटरनेट तथा वेब इक्कीसवीं सदी के सबसे अधिक शक्तीशाली ओजार या संसाधन बन चुके है।
इंटरनेट तथा वेब दोनों समान नही है। वास्तव मे इंटरनेट नेटवर्क होता है। यह विभिन्न कम्पयूटरो के बीच सूचनाओ का आदान-प्रधान के लिए तारों केबल्स, सैटेलाईट, तथा नियमो को जोडकर बनाया गया नेटवर्क है।
इस नेटवर्क से जुडे रहने को आॅनलाईन कहते है। इंटरनेट प्रत्येक भाग मे लाखो कम्पयूटर तथा संसाधनो को जोडता है।
वेब इंटरनेट पर उपल्बध संसाधनो के लिए मल्टीमीडिया इंटरफेस हैं। अरबो लोग प्रत्येक दिन इन (वेब और इंटरनेट) का उपयोग करते है।
कार्य-
संसार का माध्यम- ई-मेल , चेट, फाईल आदान प्रदान, फोटो आॅडियो, चलचित्र इत्यादि।
आॅनलाईन खरिददारी
मनोरंजन
शिक्षा
और भी नए नए कार्यो मे उपयोग मे लाए जा रहे है ये।

Google Aap par najar rkhta he esse kaise bache? गूगल आप पर अपनी नजर कैसे रखता है और उससे किस प्रकार बचें?

गूगल आप पर अपनी नजर कैसे रखता है और उससे किस प्रकार बचें?
क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन गूगल आपकी हर एक गतिविधि से लेकर आपकी विचारधारा, संपर्क, पसंद नापसंद आदि के विषय में सब कुछ जानता है? आइए आज हम इसी पर चर्चा करते हैं कि गूगल ये सब कैसे करता है और इसका उसे क्या लाभ है? गूगल की अधिकतर सेवाएं नि:शुल्क हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
1. गूगल सर्च इंजन: इस दैत्याकार सर्च इंजन से शायद ही आजतक कोई बच पाया हो। यदि आप इंटरनेट पर भ्रमण करना चाहें तो बिना इस सर्च इंजन के शायद ही कभी कर पाएं। लेकिन एक बात बता दूं कि यह सर्च इंजन आपके द्वारा खोजे गए हर कीवर्ड और क्लिक की गई साइट के विषय में जानकारी एकत्रित करते रहता है ताकि यह आपकी रुचियों पसंद नापसंद को समझ सके।
2. यूट्यूब: दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो साझा करने वाली सेवा यूट्यूब पर जो वीडियो आप देखते हैं, ग्राहकी लेते हैं या पसंद नापसंद करते हैं सबका लेखा जोखा गूगल रखता है।
3. क्रोम ब्राउजर: बताने की जरूरत नही कि यह ब्राउजर भी आपके द्वारा खोजी जा रही चीजों के विषय में गूगल को जानकारी भेजता रहता है।
4. एंड्रायड: यह स्मार्टफोनों में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। यदि आपने भी इसका प्रयोग किया है तो आप जानते होंगे कि इसे प्रयोग करने का अर्थ है अपने सारे संपर्क, अपनी भौगोलिक स्थिति आदि सबके विषय में गूगल को जानकारी भेजना।
5. गूगल एडसेंस: यह गूगल की विज्ञापन सेवा है। जाहिर सी बात है विज्ञापन कोड जहां जहां लगा होगा वहां वहां आपकी उपस्थिति दर्ज की जाएगी और उसकी सूचना गूगल को भेजी जाएगी
6. गूगल एनालिटिक्स: इस सेवा के माध्यम से आप यह जान सकते हैं कि आपकी साइट पर पाठकों के आवागमन की क्या स्थिति है। कब लोग अधिक आते हैं, किस स्थान से अधिक आते हैं आदि जानकारियां गूगल एनालिटिक्स आपको उपलब्ध कराता है। किन्तु जितनी जानकारी यह वेबमास्टर को उपलब्ध कराता है उससे अधिक जानकारी यह गूगल को भेज देता है। गूगल एनालिटिक्स छिपे तौर पर चलता रहता है इसलिए आपको पता भी नही लगता कि आप पर नजर रखी जा रही है।
7. गूगल डीएनएस: यदि आप गूगल की कोई सेवा प्रयोग नही करते और केवल डीएनएस भर भी प्रयोग करते हैं तो आपके हर क्लिक की जानकारी गूगल तक पहुंच रही है। इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि आप किस ब्राउजर या सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर रहे हैं।
8. जीमेल: आपके द्वारा भेजी गई और प्राप्त होने वाली हर ईमेल को गूगल की मशीनें चेक करती हैं और उस हिसाब से विज्ञापन तय करती हैं।
9. गूगल प्लस: सोशल नेटवर्किंग साइट।
अब आप इस सूची को देखकर समझ ही गए होंगे कि गूगल की नजरों से बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। तो फिर गूगल आख्रिर इस सारे डाटा का करता क्या है? उत्तर है आपकी रुचियों और व्यवहार को जानकर आपको उसी हिसाब से विज्ञापन दिखाता है और इन विज्ञापनों से पैसे कमाता है। यही है पूरा फंडा। यही नही बल्कि ऐसा भी सुनने में आया है कि अमेरिका की सरकार भी बेहद खूफिया तरीके से इसके माध्यम से लोगों पर नजर रखती है।
तो इससे बचें कैसे? वैसे तो आप इससे पूरी तरह नही बच सकते हैं। हां फिर भी आंशिक रूप से संभव है कि आप चाहें तो गूगल को अपने बारे में सारी जानकारियां न दें।
इसका सीधा तरीका यह हो सकता है कि आप सारी जरुरतों के लिए एक ही कंपनी पर निर्भर न हो जाएं। मसलन आप ईमेल के लिए अलग और सर्च के लिए अलग सेवा इस्तेमाल कर सकते हैं।
कोशिश करें कि जब आप गूगल में खोज कर रहे हों तब लॉग आउट हों। हलांकि गूगल तब भी आपके बारे में जानकारी एकत्रित करते रहता है पर फिर भी आपकी पहचान गुप्त रहती है।
नियमित रूप से कुकीज आदि को मिटाते रहें|
एडब्लॉकर आदि का प्रयोग करें ताकि वो विज्ञापनों को अपने आप हटा दे।
गूगल एनालिटिक्स से बचना है तो एक ब्राउजर एक्सटेंशन उपलब्ध हैं जिनसे एनालिटिक्स की स्क्रिप्ट अक्षम हो जाती है और गूगल आपको नही देख पाता। इन्हे भी ब्राउजरों में लगाकर रख सकते हैं। यह भी गूगल नें ही उपलब्ध कराया है: https://tools.google.com/dlpage/gaoptout
गूगल डीएनएस के स्थान पर ओपेन डीएनएस या फिर अपने इंटरनेट सेवाप्रदाता द्वारा दिए गए किसी डीएनएस का प्रयोग कर सकते हैं।
कम से कम अपनी वेबसाइट में गूगल एनालिटिक्स के स्थान पर पिविकमुक्त स्रोत एनालिटिक्स का प्रयोग कर सकते हैं।
ईमेल के लिए भी खुद ही वेबहोस्टिंग कंपनी से अपने डोमेन पर ईमेल आईडी ले सकते हैं।
चिट्ठे आदि लिखने का शौक है तो बजाए ब्लागर का प्रयोग करने के अपनी वेबसाइट शुरू करें और उसमें वर्डप्रेस स्थापित करके ब्लाग लिखें।

खोज इंजन (Search Engines google)

खोज इंजन (Search Engines
Search Engine' एक ऐसी तकनीक है जिससे इंटरनेट पर जानकारी को खोजा जा सकता है, चाहे वह किसी भी भाषा में हो । सर्च इंजिन में एक वाक्य या कुछ शब्द लिखने होते हैं जिनको कि खोजा जाए । आजकल google का सर्च काफी लोकप्रिय है ।
अब सवाल यह उठता है कि क्या हिन्दी में भी सर्च की जा सकती है । जबाब है - हां, बिल्कुल इसी तरह जैसे कि लैटिन अक्षरों में ! शर्त यही है कि आपको जो भी खोजना या 'सर्च' करना है, उसे हिन्दी में ही लिखकर 'google search' बटन को दबाना है । ऐसा करो कि जाटलैंड की कोई भी पोस्ट खोलो जो हिन्दी में है । उसके एक वाक्य को अपने mouse से highlight करके कापी करके गूगल के बाक्स में डालो और सर्च करो । आपको जाटलैंड के URL का option मिल जायेगा ।
है न अजीब पर सच ! इसीलिये सर्च इंजिन से किसी भी भाषा में लिखे हुए पेज इंटरनेट पर खोजे जा सकते हैं - हिन्दी में भी !!
Kho engine ke prakar or khoj engine ke bare me adhik janki just coming

एंड्रॉयड डिवाइस से मैलवेयर कैसे हटाए

कई बार ऐप्स के साथ मैलवेयर आ जाते हैं, ख़ास तौर पर ऐसे
ऐप्स के साथ जो गूगल स्टोर से नहीं, बल्कि
कहीं और से ख़रीदे गए हों.
मैलवेयर को स्मार्टफोन से हटाने का काम काफी
मेहनत का है लेकिन अगर आपने मैलवेयर को
नहीं हटाया तो आपके स्मार्टफोन
की रफ़्तार धीमी हो
जाएगी.
सबसे पहले अपने स्मार्टफोन को 'सेफ मोड' में बूट
कीजिए. इससे सभी ऐप जो अपने
डाउनलोड किए होंगे, और साथ में छिपे हुए मैलवेयर,
भी डिसएबल हो जाएंगे.
जब फ़ोन रीबूट हो रहा है तो आपको मेनू और
ऑन/ऑफ बटन को प्रेस करके सेफ मोड में लाना होगा. उसके
बाद आपके फ़ोन के बाईं तरफ नीचे सेफ मोड
लिखा होगा.
अनइन्स्टॉल भी करें
उसके बाद सेटिंग्स में जाकर ऍप्लिकेशन चुनिए जहां पर
आपको वो सभी ऐप दिखेंगे जो अपने डाउनलोड
किया है.
जो भी ऐसे ऐप आपने डाउनलोड किया हो जिन पर
आपको भरोसा नहीं है, उन्हें अनइन्स्टॉल कर
दें.
अगर कोई ऐप ग्रे हो गया है और अनइन्स्टॉल
नहीं हो रहा है, इसका मतलब है कि आपने
उस ऐप को डिवाइस एडमिनिस्ट्रेटर के लिहाज़ से रखा हुआ है.
उसको डिसएबल करके ऐप को अनइन्स्टॉल करना होगा.
एक बारे अपने सभी ऐप अनइन्स्टॉल कर लिए
उसके बाद आपको अपने फ़ोन को एक बार फिर से बूट करना
होगा. जब आपका फ़ोन फिर से ऑन होगा तो आपको
उसकी रफ़्तार में पहले से काफी
फर्क दिखाई देगा.

कंप्यूटर वायरस क्या है .. ? Computer virus kya he..?

कंप्यूटर वायरस क्या है .. ?
ये एक ऐसा प्रोग्राम होता है, जो खुद बा खुद आपके कंप्यूटर पे अपने आप को संयोजित करता है, एक कम्प्यूटर वायरस एक कंप्यूटर प्रोग्राम (कंप्यूटर प्रोग्राम) है जो अपनी अनुलिपि कर सकता है और उपयोगकर्ता की अनुमति के बिना एक कंप्यूटर को संक्रमित कर सकता है और उपयोगकर्ता को इसका पता भी नहीं चलता है. विभिन्न प्रकार के मैलवेयर (मैलवेयर) और एडवेयर (adware) प्रोग्राम्स के संदर्भ में भी "वायरस" शब्द का उपयोग सामान्य रूप से होता है, हालाँकि यह कभी-कभी ग़लती से भी होता है.
मूल वायरस अनुलिपियों में परिवर्तन कर सकता है, या अनुलिपियाँ ख़ुद अपने आप में परिवर्तन कर सकती हैं, जैसा कि एक रूपांतरित वायरस (रूपांतरित वायरस) में होता है. यह नाम सयोग वश बीमारी वाले वायरस से मिलता है मगर ये उनसे पूर्णतः अलग होते है.वायरस प्रोग्रामों का प्रमुख उददेश्य केवल कम्प्यूटर मेमोरी में एकत्रित आंकड़ों व संपर्क में आने वाले सभी प्रोग्रामों को अपने संक्रमण से प्रभावित करना है. वास्तव में कम्प्यूटर वायरस कुछ निर्देशों का एक कम्प्यूटर प्रोग्राम मात्र होता है जो अत्यन्त सूक्षम किन्तु शक्तिशाली होता है. यह कम्प्यूटर को अपने तरीके से निर्देशित कर सकता है. ये वायरस प्रोग्राम किसी भी सामान्य कम्प्यूटर प्रोग्राम के साथ जुड़ जाते हैं और उनके माध्यम से कम्प्यूटरों में प्रवेश पाकर अपने उददेश्य अर्थात डाटा और प्रोग्राम को नष्ट करने के उददेश्य को पूरा करते हैं. अपने संक्रमणकारी प्रभाव से ये सम्पर्क में आने वाले सभी प्रोग्रामों को प्रभावित कर नष्ट अथवा क्षत-विक्षत कर देते हैं. वायरस से प्रभावित कोई भी कम्प्यूटर प्रोग्राम अपनी सामान्य कार्य शैली में अनजानी तथा अनचाही रूकावटें, गलतियां तथा कई अन्य समस्याएं पैदा कर देता है. प्रत्येक वायरस प्रोग्राम कुछ कम्प्यूटर निर्देशों का एक समूह होता है जिसमें उसके अस्तित्व को बनाएं रखने का तरीका, संक्रमण फैलाने का तरीका तथा हानि का प्रकार निर्दिष्ट होता है. सभी कम्प्यूटर वायरस प्रोग्राम मुख्यतः असेम्बली भाषा या किसी उच्च स्तरीय भाषा जैसे "पास्कल" या "सी" में लिखे होते हैं.
वायरस के प्रकार 1. बूट सेक्टर वायरस 2. फाइल वायरस 3. अन्य वायरस
  एक वायरस एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में तभी फ़ैल सकता है जब इसका होस्ट एक असंक्रमित कंप्यूटर में लाया जाता है, उदाहरण के लिए एक उपयोगकर्ता के द्वारा इसे एक नेटवर्क या इन्टरनेट पर भेजने से, या इसे हटाये जाने योग्य माध्यम जैसे फ्लॉपी डिस्क (फ्लॉपी डिस्क), सीडी, या यूएसबी ड्राइव पर लाने से. इसी के साथ वायरस एक ऐसे संचिकातंत्र या जाल संचिका प्रमाली (नेटवर्क फाइल सिस्टम) पर संक्रमित संचिकाओं के द्वारा दूसरे कम्पूटरों पर फ़ैल सकता है जो दूसरे कम्प्यूटरों पर भी खुल सकती हों. कभी कभी कंप्यूटर का कीड़ा (कंप्यूटर कीड़ा) और ट्रोजन होर्सेस (ट्रोजन हॉर्स) के लिए भी भ्रमपूर्वक वायरस शब्द का उपयोग किया जाता है. एक कीडा अन्य कम्प्यूटरों में ख़ुद फैला सकता है इसे पोषी के एक भाग्य के रूप में स्थानांतरित होने की जरुरत नहीं होती है, और एक ट्रोजन होर्स एक ऐसी फाईल है जो हानिरहित प्रतीत होती है.
कीडे और ट्रोजन होर्स एक कम्यूटर सिस्टम के आंकडों, कार्यात्मक प्रदर्शन, या कार्य निष्पादन के दौरान नेटवर्किंग को नुकसान पहुंचा सकते हैं. सामान्य तौर पर, एक कीड़ा वास्तव में सिस्टम के हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर को नुकसान नहीं पहुंचाता, जबकि कम से कम सिद्धांत रूप में, एकट्रोजन पेलोड, निष्पादन के दोरान किसी भी प्रकार का नुकसान पहुँचने में सक्षम होता है. जब प्रोग्राम नहीं चल रहा है तब कुछ भी नहीं दिखाई देता है लेकिन जैसे ही संक्रमित कोड चलता है, ट्रोजन होर्स प्रवेश कर जाता है.यही कारण है कि लोगों के लिए वायरस और अन्य मैलवेयर को खोजना बहुत ही कठिन होता है और इसीलिए उन्हें स्पायवेयर प्रोग्राम और पंजीकरण प्रक्रिया का उपयोग करना पड़ता है. एक कंप्यूटर वायरस खुद को ये एक कंप्यूटर प्रोग्राम होता है कॉपी करता हैं. ये उपयोगकर्ता की अनुमति या जानकारी के बिना उसके कंप्यूटर को संक्रमित कर सकते ये अपने मेजबान (असंक्रमित कंप्यूटर) पर ले जाये जाते ही केवल एक कंप्यूटर से दूसरे में फैल सकता है, ये एक फाइल सिस्टम पर फ़ाइलों को संक्रमित होने से अन्य कंप्यूटरों में फैल सकता है. वायरस स्वयं को न खोज पाने के लिए और कम्प्यूटर कार्यक्रमों को बर्बाद करने के लिए ही बनाए जाते है. इसके अलावा, कुछ सूत्रों का कहना है कि कुछ वायरस को, वायरस फ़ाइलों को हटाने, या हार्ड डिस्क reformatting का ही इन्तज़ार रहता है क्योंकि ये, इसी के लिए ही बनाए जाते है, और ये हानिकारक कार्यक्रमों से कंप्यूटर को क्षति पहुँचाने के लिए बनाए जाते हैं कुछ मेलवेयर, विनाशकारी प्रोग्रामों, संचिकाओं को डिलीट करने, या हार्ड डिस्क की पुनः फ़ॉर्मेटिंग करने के द्वारा कंप्यूटर को क्षति पहुचाने के लिए प्रोग्राम किए जाते हैं. अन्य मैलवेयर प्रोग्राम किसी क्षति के लिए नहीं बनाये जाते हैं, लेकिन साधारण रूप से अपने आप को अनुलिपित कर लेते हैं शायद कोई टेक्स्ट, वीडियो, या ऑडियो संदेश के द्वारा अपनी उपस्थिति को दर्शाते हैं.यहाँ तक की ये कम अशुभ मैलवेयर प्रोग्राम भी कंप्यूटर उपयोगकर्ता (कंप्यूटर उपयोगकर्ता) के लिए समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं .. वे आमतौर पर वैध कार्यक्रमों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली कम्प्यूटर की स्मृति (कंप्यूटर स्मृति) को अपने नियंत्रण में ले लेते हैं.इसके परिणाम स्वरूप, वे अक्सर अनियमित व्यवहार का कारण होते हैं और सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं. इसके अतिरिक्त, बहुत से मैलवेयर बग (बग) से ग्रस्त होते हैं, और ये बग सिस्टम को नुक्सान पंहुचा सकते हैं या डाटा क्षति (डेटा हानि) का कारण हो सकते हैं. कई सीआईडी ​​प्रोग्राम ऐसे प्रोग्राम हैं जो उपयोगकर्ता द्वारा डाउनलोड किए गए हैं और हर बार पॉप अप किए जाते हैं. इसके परिणाम स्वरुप कंप्यूटर की गति बहुत कम हो जाती है लेकिन इसे ढूंढ़ना और समस्या को रोकना बहुत ही कठिन होता है. .ये वायरस कंप्यूटर उपयोगकर्ता के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं सिस्टम क्रैश हो सकता है. इसके अलावा, कई फाइलें वायरस बग से ग्रस्त हो सकती हैं, और इन बगं प्रणाली के कारण आपका कम्प्यूटर दुर्घटनाओं और डेटा हानि का कारण बन सकता है एक कंप्यूटर वायरस खुद को दोहराने का कार्य भी कर सकता हैं
मुख्य वायरस दो प्रकार के होते हैं: 1: फ़ाइल फैक्टर .... (फ़ाइल फेक्टर), 2: बूट वायरस .... (बूट वायरस)
1: फ़ाइल फैक्टर .... (फ़ाइल फेक्टर) ये वायरस कंप्यूटर में फ़ाइल के पते को बदल देते है
2: बूट वायरस .... (बूट वायरस) ये ऐसा वायरस है जो कि सिस्टम बायोज पर असर डालता है, व खराब करता है, जिसकी वजह से कंप्यूटर के हार्डवेयर काम करना छोड़ने लगते है, और malwares कई प्रकार के होते हैं और विस्तार में उन सभी को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है, और समझना भी, इसलिए यहाँ मैं संक्षिप्त में इन में से कुछ समझा रहा हूँ: -
1. ट्रोजन हॉर्स (ट्रोजन हॉर्स): एक ट्रोजन बड़ी गुपचुप तरीके से आप के कंप्यूटर सिस्टम को संक्रमित कर देगा जो एक दुर्भावनापूर्ण प्रोग्राम है. ट्रोजन अन्य कार्यक्रमों सबसे ऊपर आता है और उपयोगकर्ता के ज्ञान के बिना एक सिस्टम पर स्थापित हो जाता है ट्रोजन्स आपके सिस्टम पर एक लक्ष्य बनाकर हैकिंग सॉफ्टवेयर स्थापित करं और उस प्रणाली तक हैकर की पहुँच बनाने और बनाए रखने में, हैकर की सहायता करने के लिए इस्तेमाल किया व बनाया जाता है. ट्रोजन में कई भिन्न प्रकार होते हैं, इनमें से कुछ: -
1. दूरस्थ प्रशासन ट्रोजन (दूरस्थ प्रशासन ट्रोजन)
2. डाटा ट्रोजन चोरी (डाटा ट्रोजन चोरी)
3. सुरक्षा अक्षम ट्रोजन (सुरक्षा Disabler ट्रोजन)
4. नियंत्रण परिवर्तक ट्रोजन (नियंत्रण परिवर्तक ट्रोजन)
कुछ प्रसिद्ध ट्रोजन:
1. जानवर (बीस्ट)
2. वापस छिद्र (बैक ओरीफ़ाइस)
3. नेट बस (नेट बस)
4. प्रो चूहा (प्रो रैट)
5. लड़की मित्र (गर्ल फ्रेंड)
6. उप आदि सात (सब सेवन ई टी सी)
2 .Boot क्षेत्र के वायरस (सेक्टर वायरस बूट): ये एक ऐसा वायरस है जो कि बूटिंग के समय में कंप्यूटर के द्वारा पढ़ा जाता है कि सिस्टम बूट फ़ाइलों को ही देख़ता है. ये आम तौर पर फ्लॉपी डिस्क के जरिये फैलता हैं.
3 .Macro वायरस (मैक्रो वायरस): मैक्रो वायरस खुद को वितरित करने के लिए बनाए जाते है ये एके मैक्रो प्रोग्रामिंग भाषा का उपयोग करने वाले वायरस होते हैं. वे ऐसे एमएस वर्ड या एमएस एक्सेल के रूप में दस्तावेजों को संक्रमित कर देते हैं और आम तौर पर इसी तरह की अन्य दस्तावेजों में अपनी प्रोग्रामिंग भाषा फैला देते हैं.
4 .Worms (वोर्म्स): वोर्म्स एक कीड़ा बना देता है और खुद की प्रतियों के वितरण की सुविधा देता है जो कि एक कार्यक्रम होता है.
उदाहरणार्थ एक डिस्क ड्राइव से दूसरे, या ईमेल का उपयोग कर अपने आप को कॉपी करने के लिए कार्यक्रम होता है. यह प्रणाली भेद्यता के शोषण के माध्यम से या एक संक्रमित ई - मेल पर क्लिक करके आ सकता है वोर्म्स यानी कीड़े का सबसे सामान्य स्रोत नकली ईमेल या ईमेल संलग्नक हैं
.
5 .Memory निवासी वायरस (मेमोरी रेजिडेंट वायरस): मेमोरी रेजिडेंट वायरस एक कंप्यूटर में अस्थिर स्मृति (रैम) में जाकरें रहते हैं. वे जब एक प्रोग्राम कंप्यूटर पर चलता है तो ये भी उसी के साथ चलते हैं और शुरुआत में ही प्रोग्राम बंद करके बाद में स्मृति में रह जाते हैं.
6 .Rootkit वायरस (रूटकिट वायरस): एक रूटकिट वायरस किसी एक कंप्यूटर प्रणाली का नियंत्रण हासिल करने के लिए, अनुमति देने के लिए बनाया जाता है जो कि एक undetectable वायरस है. रूटकिट वायरस लिनक्स व्यवस्थापक जड़ उपयोगकर्ता से आता है. ये वायरस आमतौर पर ट्रोजन द्वारा भी स्थापित होता हैं.

इन्टरनेट internat kya he

इन्टरनेट
इन्टरनेट शब्द को अगर दो भागो मे बाँट दिया जाये तो इंटरनेशनल + नेटवर्क दो शब्द बनते हैं, और दोनों शब्दों का मतलब निकाला जाये तो इसका अर्थ आता हैं अन्तर्राष्ट्रीय जाल अर्थात ऐसा जाल जिसमे सम्पूर्ण संसार शामिल हो.
इंटरनेट दुनिया भर में सार्वजनिक रूप से सुलभ कंप्यूटर के सुपर नेटवर्क है. इंटरनेट नेटवर्क  मे हजारों की  संख्या मे पूरी दुनिया के कंप्यूटर जुड़े हुए हैं|
इंटरनेट का सफर, १९७० के दशक में, विंट सर्फ (Vint Cerf) और बाब काहन् (Bob Kanh) ने शुरू किया गया। उन्होनें एक ऐसे तरीके का आविष्कार किया, जिसके द्वारा कंप्यूटर पर किसी सूचना को छोटे-छोटे पैकेट में तोड़ा जा सकता था और दूसरे कम्प्यूटर में इस प्रकार से भेजा जा सकता था कि वे पैकेट दूसरे कम्प्यूटर पर पहुंच कर पुनः उस सूचना कि प्रतिलिपी बना सकें – अथार्त कंप्यूटरों के बीच संवाद करने का तरीका निकाला। इस तरीके को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल {Transmission Control Protocol (TCP)} कहा गया।
सूचना का इस तरह से आदान प्रदान करना तब भी दुहराया जा सकता है जब किसी भी नेटवर्क में दो से अधिक कंप्यूटर हों। क्योंकि किसी भी नेटवर्क में हर कम्प्यूटर का खास पता होता है। इस पते को इण्टरनेट प्रोटोकॉल पता {Internet Protocol (I.P.) address} कहा जाता है। इण्टरनेट प्रोटोकॉल (I.P.) पता वास्तव में कुछ नम्बर होते हैं जो एक दूसरे से एक बिंदु के द्वारा अलग-अलग किए गए हैं।
सूचना को जब छोटे-छोटे पैकेटों में तोड़ कर दूसरे कम्प्यूटर में भेजा जाता है तो यह पैकेट एक तरह से एक चिट्ठी होती है जिसमें भेजने वाले कम्प्यूटर का पता और पाने वाले कम्प्यूटर का पता लिखा होता है। जब वह पैकेट किसी भी नेटवर्क कम्प्यूटर के पास पहुंचता है तो कम्प्यूटर देखता है कि वह पैकेट उसके लिए भेजा गया है या नहीं। यदि वह पैकेट उसके लिए नहीं भेजा गया है तो वह उसे आगे उस दिशा में बढ़ा देता है जिस दिशा में वह कंप्यूटर है जिसके लिये वह पैकेट भेजा गया है। इस तरह से पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह भेजने को इण्टरनेट प्रोटोकॉल {Internet Protocol (I.P.)} कहा जाता है।
अक्सर कार्यालयों के सारे कम्प्यूटर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और वे एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। इसको Local Area Network (LAN) लैन कहते हैं। लैन में जुड़ा कोई कंप्यूटर या कोई अकेला कंप्यूटर, दूसरे कंप्यूटरों के साथ टेलीफोन लाइन या सेटेलाइट से जुड़ा रहता है। अर्थात, दुनिया भर के कम्प्यूटर एक दूसरे से जुड़े हैं। इण्टरनेट, दुनिया भर के कम्प्यूटर का ऎसा नेटवर्क है जो एक दूसरे से संवाद कर सकता है।

चालू होते ही कम्प्यूटर क्या करता है!

चालू होते ही कम्प्यूटर क्या करता है!
जब आप स्टार्ट बटन (start button) दबा कर अपने कम्प्यूटर (computer) को चालू करते हैं तो कम्प्यूटर (computer) में सिलसिलेवार प्रक्रियाएँ आरम्भ हो जाती हैं जिसे किबूटिंग (booting) के नाम से जाना जाता है। बूटिंग (booting) दो चरणों में होती है जिसके प्रथम चरण में कम्प्यूटर (computer) पॉवर-आन सेल्फ टेस्ट (Power-On Self Test)करता है अर्थात् स्वयं को जाँचता-परखता है और दूसरे चरण में आपरेटिंग सिस्टम (Operating System) को लोड (Load) करता है।
कम्प्यूटर (computer) के सभी अवयव सही-सही कार्य कर रहे हैं इस बात को परखने कीएक श्रृंखलाबद्ध जांच प्रक्रिया (a series of tests) को पॉवर-आन सेल्फ टेस्ट (Power-On Self Test) कहा जाता है :
सर्वप्रथम सी.पी.यू. (C.P.U.) अर्थात् सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (central processing unit) स्वयं को पुनर्स्थापित (reset) करता है।
सी.पी.यू. (C.P.U.) स्वयं को जाँचता है और बयास (Bios) में स्थित मेमोरी (Memory) के प्रोग्राम्स (programs) को शुरू करता है।
फिर बयास (bios) में स्थित कोड्स (codes) की सहायता से सभी घटकों (components) की जाँच करता है।
फिर राइटिंग और रीडिंग (writing and reading) करके डीरैम (DRAM) की जाँच होती है।
तत्पश्चात की-बोर्ड (keyboard) की जाँच होती है कि वह सही ढ़ंग से जुड़ा है या नही
उसके बाद फ्लॉपी ड्राइव (floppy drive) और हार्ड ड्राइव (Hard drive)की जाँच की जाती है।
फिर जाँच की जाती है कि माउस (mouse) जुड़ा है या नही।
अंततः जाँच से प्राप्त डाटा (data) का बयास (bios) में कॉन्फिगर्ड डाटा (configured data) से मिलान किया जाता है।
किसी भी प्रकार की गलती पाने पर कम्प्यूटर (computer) एरर मेसेज (error messege) देता है और यदि सभी कुछ ठीक-ठाक मिले तो आपरेटिंग सिस्टम (operating system) को लोड करने की प्रक्रिया आरंभ कर देता है।
आपरेटिंग सिस्टम (operating system) लोड होना
सी.पी.यू. (C.P.U.) आपरेटिंग सिस्टम को फ्लॉपी (floppy), सी.डी. (CD) तथा हार्ड ड्राइव (hard drive) में खोजता है।
आपरेटिंग सिस्टम के मिल जाने पर उसके भीतर स्थित बूट रेकार्ड को डीरैम (DRAM)में स्थानांतरित करता है।
आपरेटिंग सिस्टम (operating system) के लोड हो जाने तक यह प्रक्रिया जारी रहती है।
आपरेटिंग सिस्टम (operating system) पूर्णतः लोड हो जाने के बाद डेस्कटॉप दिखाई पड़ने लगता है और कम्प्यूटर (Computer) उपयोग करने लायक बन जाता है।

अब फटाफट चार्ज होगी आपके मोबाइल की बैटरी

स्मार्टफोन यूजर्स अक्सर बात को
लेकर परेशान रहते हैं कि उनके फोन की
बैटरी बहुत जल्दी खत्म हो
जाती है। हालांकि ये बहुत नॉर्मल प्रॉब्लम है,
जिससे अधिकतर फोन यूजर्स परेशान रहते हैं। फोन के
मल्टी टास्किंग होने के चलते इनका यूज
मल्टी पर्पज होता है। इसके चलते फोन में
इंटरनेट ऑन रखना पड़ता है। ऐसे में फोन की
बैटरी 24 घंटे तक नहीं चल
पाती, लेकिन अब इससे परेशान होने
की जरूरत नहीं है।
हाल ही में बीजिंग में एक
ऐसी बैटरी तैयार की
गई है, जिसमें बैटरी तैयार करने वाले लोगों का दावा
है कि इस बैटरी की सहायता से
आप सिर्फ 6 मिनट में फोन चार्ज कर सकते हैं।
वहीं दूसरी ओर एक ब्रिटिश
कंपनी ने दावा किया है कि उन्होंने हाइड्रोजन
की बैटरी बनाई है, जो स्मार्टफोन्स
को 7 दिन तक लंबा बैकअप देने में सक्षम है। इस
बैटरी में टाइटेनियम डाइऑक्साइड को
एल्यूमिनियम के चारों तरफ लगाया है, जो बैटरी
के निगेटिव इलेक्ट्रोड की तरह काम करेगा।
साथ ही, कंपनी की
मानें तो इसमें मौजूदा लिथियम बैटरी
की तुलना में चार गुना ज्यादा
कैपेसिटी होगी। इस रिसर्च को
एल्यूमिनियम में पुरानी लिथियम
बैटरी को रखकर किया गया है, जिसके बाद ये
नतीजे सामने आए कि एल्यूमिनियम एक हाई
कैपेसिटी का मैटेरियल है, लेकिन ये चार्जिंग और
डिस्चार्जिंग के साथ सिकुड़ता है।

दुनिया के सबसे लोकप्रिय इंटरनेट ब्राउजर

दुनिया के सबसे लोकप्रिय इंटरनेट ब्राउजर
अगर आप Internet चलाते हैं तो Browser का इस्‍तेमाल तो करते ही होगें, लेकिन क्‍या आपको पता है कि दुनिया भर के लोग किन किन Browser का इस्‍तेमाल करते हैं। आज मैं आपकी मुलाकात कराने जा रहा हॅू दुनिया भर में प्रयोग किये जाने वाले  Internet Browser से।यहॉ कोशिश यह की गयी है कि उन  Internet Browser को श्रेणी में सबसे top रखा जाये जो सबसे ज्‍यादा लोकप्रिय (populer) हैं,  इन सभी Browser की अलग अलग खूबियॉ हैं, जिसके आधार पर यूजर इनको पसन्‍द करते हैं लेकिन फिर आप अपनी राय अवश्‍य दें कि कौन सा ब्राउजर सर्वश्रेष्‍ठ है और आप कौन सा प्रयोग करते हैं।
Chrome
यह Google  के प्‍लेटफार्म पर बनाया गया इंटनरेट ब्राउजर है, इसका अपना अलग लुक है, यह तेज गति से काम करता है, इसमें कई सारे प्‍लगइन प्रीलोडेड होते हैं।इसे सितम्‍बर, 2008 में लांच किया गया था। बाद में इसका मोबाइल वर्जन भी लांच किया गया।
Mozilla Firefox
यह लगभग 10 वर्ष पुराना लोकप्रिय इंटरनेट ब्राउजर है, इसको वर्ष 2002 में Mozilla Corporation ने लांच किया था, Mozilla Firefox एक तेज गति का ब्राउजर है, सभी प्रकार के फांन्‍ट को सपोर्ट करता है, कुछ दिन पहले इसका हिन्‍दी वर्जन भी लांच किया गया था।
Internet Explorer
यह ब्राउजर Microsoft Corporation  ने अगस्‍त, 1995 में विण्‍डोज 95 के साथ लांच किया था, इसने उपभोक्‍ताओं का इंटनेट का प्रथम बार अनुभव कराया आज के दौर में भी ज्‍यादातर यूजर इंटरनेट से मतलब  Internet Explorer से ही है।
Safari
2003 में Apple कम्‍पनी ने Safari को खास अपने ऑपरेटिंग सिस्‍टम मैक के लिये तैयार किया था प्रारम्‍भ यह सिर्फ उन्‍हीं के कम्‍प्‍यूटरों का सपोर्ट करता था, लेकिन बाद में इसका विण्‍डोज वर्जन भी लांच किया गया।
Opera
Opera Software ASA ने वर्ष 1994 में एक बहुत तेज गति वाला ब्राउरज लांच किया जिसकी गति को आज तक कोई मात नहीं दे पाया है यह आज भी सर्वाधिक गति वाला बेब ब्राउजर है
Epic
पहला भारतीय ब्राउजर यह 12 भारतीय भाषओं को समर्थन देता है, इसके अलावा इनमें कई ऐसे फीचर एड किये गये है, जो आपको पसन्‍द आयेगें इसे Hidden Reflex ने जो एक भारतीय इंजिनियर है (श्री आलोक भारद्वाज) द्वारा स्‍थापित किया गया है ने 2010 में लांच किया  था। इसे मोजिला के प्‍लेटफार्म पर बनाया गया है,

ऐसे पता करें कहीं हैक तो नहीं हुआ आपका जीमेल खाता

ऐसे पता करें कहीं हैक तो नहीं हुआ आपका जीमेल खाता
हाल में ही याहू मेल इस्तेमाल करने वाले कुछ लोगों के यूजरनेम और पासवर्ड हैक हो गए हैं। पिछले दो महीने में याहू की ई-मेल सेवा में सेंधमारी की यह दूसरी घटना है। किसी का मेल अकाउंट के हैक होने की खबर नई नहीं है। ऐसे में हर किसी के लिए यह जानना जरूरी है कि अपने ई-मेल खाते को सेफ कैसे रखा जाए। दुनिया में ईमेल के लिए गूगल का जीमेल सबसे ज्यादा यूज किया जाता है। जीमेल पर विश्व में लगभग 500 मिलियन से ज्यादा यूजर्स हैं जो डेली 100 बिलियन ईमेल करते हैं।
अगर आप भी जीमेल यूज करते हैं तो आपको यह पता होना चाहिए कि उसे कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। अकाउंट की सुरक्षा के लिए उपाय तो अलग बात हैं लेकिन आप को कैसे पता चलेगा कि किसी और ने आपका अकाउंट हैक कर लिया है। आइए आपको बताते हैं एक आसान तरीका जिससे जिससे आपको पता चल जाएगा कि कहीं आपका अकाउंट कोई और तो नहीं यूज कर रहा।
गूगल ने जीमेल में कुछ ऐसे टूल्स दिए है जिनकी सहायता से आप अपने अकाउंट को लॉक कर सकते हैं। यह आपको बताएगा किस समय, किस ब्राउजर और किस आईपी एड्रेस से आपको जीमेल अकाउंट को खोला गया है। इस तरह आप अपने अकाउंट को सेफ रख सकते हैं।
- सबसे पहले अपना जीमेल अकाउंट खोलें, स्क्राल डाउन करें और सबसे नीचे की तरफ आफको डिटेल्स (Details) का एक आइकन दिखाई देगा।
- डिटेल्स पर क्लिक क्लिक करेंगे तो एक pop-up window खुलेगी जिस पर "Activity Information" दिखेगी। इस में आपको बताया जाएगा कि आपके अकाउंट को किस लोकेशन से, किस समय और कितने समय तक यूज किया गया है। साथ ही ब्राउजर और IP पता भी दिखेगा। आप अपने ऑफिस और घर के आईपी से मिलाकर देखा सकते हैं कि कहीं और से आपका अकाउंट यूज तो नहीं हुआ।
- Activity Information window में आपको एक और विकल्प मिलेगा जिसमें लिखा होगा कि "Sign Out All Other Sessions"(अगर आपका जीमेल कहीं और भी खुला है तो उसे लॉग आउट करें)। इसे यूज करके आप सभी डिवाइस से आप तुरंत ही लॉग आउट हो जाएंगे।
- इस तरह से आपको पता चल जाएगा कि आपका अकाउंट कोई और व्यक्ति भी यूज कर रहा है। अगर ऐसा है तो तुरंत अपना पासवर्ड बदल लें।

गूगल क्रोम

गूगल क्रोम एक वेब ब्राउज़र है जिसे गूगल द्वारा मुक्त स्रोत कोड द्वारा निर्मित किया गया है। इसका नाम ग्राफिकल यूज़र इंटरफ़ेस (GUI) के फ्रेम यानि क्रोम पर रखा गया है। इस प्रकल्प का नाम क्रोमियम है तथा इसे बीएसडी लाईसेंस के तहत जारी किया गया है। 2 सितंबर, 2008 को गूगल क्रोम का 43 भाषाओं में माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ प्रचालन तंत्र हेतु बीटा संस्करण जारी किया गया। यह नया ब्राउज़र मुक्त स्रोत लाइनक्स कोड पर आधारित होगा, जिसमें तृतीय पार्टी विकासकर्ता को भी उसके अनुकूल अनुप्रयोग बनाने की सुविधा मिल सकेगी।
विशेषताएं
गूगल क्रोम को बेहतर सुरक्षा, बेहतर गति एवं स्थायित्व को ध्यान में रखकर बनाया गया था। क्रोम का सबसे प्रमुख लक्षण इसकी गति और अनुप्रयोग निष्पादन (एप्लीकेशन परफॉर्मेंस) हैं। इसके बीटा संस्करण को मार्च २००९ में लॉन्च किया गया था। इस संस्करण में जो नई सुविधाएं जोड़ी गई थीं उनमें प्रपत्र स्वतःपूर्ण (फॉर्म ऑटोफिल), संपूर्ण पृष्ठ ज़ूम (फुल पेज जूम), ऑटो स्क्रॉल और नए प्रकार का ड्रैग टैब प्रमुख है। इस ब्राउजर की वेबसाइट के अनुसार, देखने में ये परंपरागत गूगल मुखपृष्ठ (क्लासिकल गूगल होमपेज) की तरह है और तेज तथा स्पष्ट है। गूगल क्रोम का प्रयोग करने पर अन्य ब्राउज़रों की भांति सीधे खाली पृष्ठ नहीं खुलता बल्कि ब्राउजर उपयोक्ता द्वारा सबसे ज्यादा प्रयोग किए गये अंतिम कुछ वेबपृष्ठों का थम्बनेल दृश्य दिखाता है, जिसे क्लिक करने पर वांछित पृष्ठ खुल जाता है। (देखें: नीचे दिया चित्र) इस कारण से उपयोक्ता अपने मनवांछित पृष्ठों पर शीघ्र ही नेविगेट कर पाता है। इसमें उपलब्ध ओमनीबॉक्स का लाभ ये है कि बिना गूगल खोले ही, गूगल में सर्च कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एड्रेस बार में मात्र ओलंपिक डालते ही उससे संबंधित वेबसाइट के पते बता देता है, साथ ही अधूरे और गलत पतों को रिकवर करने की सुविधा भी इसमें है।
इस ब्राउजर में उपस्थित टास्क मैनेजर आइकन से इस बारे में जानकारी मिल सकती है, कि किस प्रक्रिया में कितनी स्मृति (मेमोरी) का प्रयोग हो रहा है। इसके साथ ही यदि कोई वेबसाइट नहीं चल रही तो उससे दूसरी साइट पर फर्क नहीं पड़ता है। क्रेश रिकवरी के द्वारा कंप्यूटर सिस्टम के अचानक बंद हो जाने पर और फिर खोलने पर यह उपयोक्ता से पूछता भी है, कि वह उसी पृष्ठ पर पुन: आना चाहते हैं या फिर नया पृष्ठ खोलना चाहते हैं। इनकॉग्निटो के कारण उपयोक्ता आईपी एड्रेस लीक नहीं होता जिससे सुरक्षा बढ़ जाती है। कुछ साइट ऐसी हैं, जहां पहली बार किसी चीज को लोड करते हुए समय कम लगेगा, फिर जितनी बार आएंगे, समय बढ़ता जाएगा। प्रत्येक साइट को उसको सर्फ करने वाले के बारे में जानकारी उसके आईपी एड्रेस से मिलती है।
लाभ और हानियां
क्रोम में ओपेरा वेब ब्राउज़र की भांति ही टैब प्रणाली का उपयोग किया गया है। इस टैब प्रणाली में ज्यादा प्रयोग की गयी वेबसाइटों का यह अपने आप इतिहास बनाकर नये टैब में जोड़ता चला जाता है। जैसे ही नये टैब पर क्लिक करते हैं यह अपने आप सहेजे गये पृष्ठों को बाक्स में प्रदर्शित करता है। इससे पूर्व पसंदीदा साईटों को नये टैब में सहेजकर रखने की यह सुविधा केवल ओपेरा के ब्राउजर में मिलती थी। गूगल द्वारा अभी तक समर्थित फायरफाक्स सबसे बड़ी कमी यह थी कि डिफाल्ट सर्च इंजन गूगल ही होता था जिसमें सीधे होमपेज से जीमेल आदि की सुविधाओं की कमी रहती थी। बाद में आई.ई-७ में एकसाथ कई सारे होमपेज बनाकर रखने की सुविधा मिली थी। किन्तु इसकी कमी इसकी मंथर गति है। भारत में 128 केपीबीएस स्पीड को ब्राडबैण्ड स्पीड कहा जाता है, जबकि पश्चिम के देशों में १ एमबीपीएस की स्पीड ब्राडबैण्ड की श्रेणी में आती है। औसत इंटरनेट उपभोक्ता इसी स्पीड पर काम करते है। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में तो यह स्पीड ७६ केपीबीएस मात्र ही होती है। ऐसे में आई ई-७ अत्यधिक धीमा हो जाता है। यहां ओपेरा, सफारी और फायरफाक्स इस लिहाज से कुछ बेहतर हैं लेकिन इतनी कम स्पीड पर कोई भी ब्राउजर ठीक से काम नहीं कर सकता। इसी कारण से आई.ई-६ ही अधिक प्रयोग होता आया है।
क्रोम के प्रयोग करते हुए ब्राउजर के ऊपर कोई पट्टी नहीं दिखाई देती है जिस पर फाईल, एडिट और विकल्प के बटन होते थे। इसे हटाने का सही कारण तो ज्ञात नहीं है, किंतु इससे विन्डो का आकार काफी बढ़ जाता है। 14-15 इंच का मॉनीटर प्रयोग करते हुए भी बेहतर विजबिलटी मिलती है। हां सीधे क्लिक कर कुछ विकल्प चुने जा सकते थे, जिनके लिए इसमें कुछ शार्टकट कुंजियों का सहारा लेना पड़ता है। क्रोम में एक कमी है कि इसमें माउस के दायें क्लिक पर रिफ्रेश का विकल्प नहीं मिलता है। इस कमी के संग ही एक अच्छाई भी है, वह है गुप्त पेज। यदि बिना रिकॉर्ड की सर्फ़िंग करनी हो तो गूगल गुप्त विन्डो का प्रयोग कर सकते हैं।

स्मार्टफोन का स्मार्ट बैकअप

स्मार्टफोन का स्मार्ट बैकअप
आईओएस, विंडोज और ब्लैकबेरी ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलने वाले मोबाइल फोन के कॉन्टैक्ट्स का बैकअप लेने का तरीका।
ऐंड्रॉयड के साथ-साथ आईओएस (आइपैड और आईफोन के ऑपरेटिंग सिस्टम), विंडोज़ 8 और ब्लैकबेरी ऑपरेटिंग सिस्टमों पर भी आपके कॉन्टैक्ट्स का डेटा इंटरनेट पर स्टोर किया जा सकता है। चूंकि जीमेल इन दिनों काफी लोकप्रिय है और यह एक स्थायी किस्म की इंटरनेट कंपनी बन गई है, इसलिए बेहतर है कि आप अपने फोन के कॉन्टैक्ट्स का डेटा जीमेल में ट्रांसफर कर लें। फोन खो जाने, खराब हो जाने, चोरी हो जाने या फिर अपग्रेड किए जाने की हालत में इंटरनेट पर मौजूद कॉन्टैक्ट्स डेटा को फिर से अपने नए फोन में डाउनलोड या सिंक्रोनाइज किया जा सकता है, यानी आपके कॉन्टैक्ट्स सदा के लिए सुरक्षित।
blackberry ब्लैकबेरी स्मार्टफोन से अपने कॉन्टैक्ट्स को इंटरनेट पर मौजूद गूगल अकाउंट में भेजना आसान है। इसके लिए यह प्रक्रिया अपनाएं:
1. सबसे पहले अपने ब्लैकबेरी फोन में गूगल अकाउंट सेटअप करें। इसके लिए होम स्क्रीन पर Setup आइकन पर टैप करें।
2. अब Email Setup विकल्प को चुनें और Add पर टैप करें।
3. यहां कुछ ईमेल सेवाओं की सूची दिखाई देगी, जिसमें से जीमेल को चुन लें।
4. अब आपसे जीमेल का ईमेल अड्रेस, यूजरनेम और पासवर्ड पूछा जाएगा।
5. अब आपको सिंक्रोनाइजेशन संबंधी विकल्प दिखाए जाएंगे। ध्यान रखें कि वहां Contacts ऑप्शन सक्रिय हो।
6. आपके कॉन्टैक्ट्स का डेटा समय-समय पर जीमेल अकाउंट के साथ सिंक्रोनाइज होता रहेगा।
ios आईपैड से कॉन्टैक्ट्स का डेटा जीमेल में भेजने के लिए CardDAV प्रोटोकॉल का इस्तेमाल एक तरीका है। आईफोन में इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कॉन्टैक्ट्स को इस तरह अपने जीमेल अकाउंट के साथ सिंक्रोनाइज़ करें:
1. आईफोन, आईपॉड टच की सेटिंग्स में जाएं।
2. Mail, Contacts, Calenders ऑप्शन पर टैप करें। सबसे ऊपर दिख रहे Add Account ऑप्शन पर टैप करें।
3. खुलने वाले पेज में Contacts में Add CardDAV Account ऑप्शन टैप करें।
4. अगले पेज में चार जानकारियां मांगी जाएंगी। यहां Server के आगे google.com डालें और अपना गूगल यूजरनेम और पासवर्ड भरें।
5. सूचनाएं देने के बाद इसी पेज पर ऊपर दाईं तरफ Next बटन टैप करें।
6. यहां कॉन्टैक्ट्स का ऑप्शन सक्रिय होना चाहिए। आगे Save बटन दबाकर सारी सेटिंग्स को सुरक्षित कर लें।
7. कॉन्टैक्ट्स के ऑनलाइन बैकअप के लिए आईफोन या आईपैड के ऐप्स में Contacts ऐप खोल लें। फोन का कॉन्टैक्ट्स डेटा खुद-ब-खुद आपके गूगल अकाउंट में जाने लगेगा। भविष्य में दोनों जगह (फोन और गूगल) कॉन्टैक्ट्स की सूची एक जैसी रहेगी।
windows विंडोज़ फोन के कॉन्टैक्ट को गूगल सिंक के जरिये गूगल अकाउंट पर सिंक्रोनाइज रखना मुमकिन है, लेकिन अब गूगल ने इसे सीमित कर दिया है। विंडोज़ फोन के कॉन्टैक्ट्स के लिए माइक्रोसॉफ्ट की सुविधाएं प्रयोग करें:
1. विंडोज़ फोन पर आपसे माइक्रोसॉफ्ट से जुड़े आपके अकाउंट का ब्यौरा मांगा जाता है। यह अकाउंट outlook.com, live.com, hotmail.com आदि से जुड़ा हो सकता है।
2. अगर ऐसा अकाउंट नहीं है तो नए विंडोज़ फोन पर शुरुआत में ही नया माइक्रोसॉफ्ट अकाउंट बना सकते हैं। यह इंटरनेट पर भी live.com पर जाकर बनाया जा सकता है।
3. विंडोज़ फोन द्वारा पूछे जाने पर माइक्रोसॉफ्ट अकाउंट यूजरनेम, पासवर्ड का ब्यौरा दें।
4. आपका माइक्रोसॉफ्ट अकाउंट सेटअप होने के बाद कॉन्टैक्ट्स का डेटा खुद माइक्रोसॉफ्ट के सर्वर पर चला जाएगा और उसके बाद नियमित रूप से अपडेट होता रहेगा।
5. अपने कॉन्टैक्ट्स का ब्यौरा इंटरनेट पर देखने के लिए outlook.com पर जाएं। लेफ्ट में ऊपर की ओर लिखे Outlook के साथ बने ऐरो पर क्लिक करें। अब कई विकल्प दिखेंगे, जिनमें एक People है। इसे क्लिक करें। आपके कॉन्टैक्ट्स का ब्यौरा दिखाई देगा।